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________________ ३६० त्रिलोकसार पाथा । ४३७ मघाषाः सकाशात् अष्टममनुराधा नक्षत्रमुदयमेति । एवं शेधेषु रोहिण्याविषु मस्तमितनक्षत्रानक्षत्रं मध्याह्नमेति । तस्मावष्टमं नक्षत्र मुखयमेसीति भाषरपीयम् ॥ ४३६ ।। नक्षत्रों की स्थितिविशेष का विधान कहते हैं - पापा : - कृतिका नक्षत्र के पनन अर्थात् अस्त होने के समय में उसका आठवां मघा नक्षत्र मध्याह्न काल की प्राप्त होता है तथा मघा से आठवाँ अनुराधा नक्षत्र उदय को प्राप्त होता है। इसी क्रम की योजना शेष नक्षत्रों के विषय में भी करनी चाहिए ॥ ४३६ ॥ विशेषार्थ :- कृतिका नक्षत्र के पतन अर्थात् अस होने के समय में कृतिका से आठवा मधा नक्षत्र मध्याह्न को और मघा से आठवीं अनुराधा उदय को प्राप्त होता है। इसी प्रकार दोष रोहणी आदि में अस्त नक्षत्र से आठवां मध्याह्न में और इससे आठवा उदय को प्राप्त होता है, ऐसा कहना चाहिये। वैसे जब रोहणी का अहल तत्र पूर्वाफाल्गुनी का मध्याह्न और ज्येष्ठा का उदय होता है। ㄨ मृगशिरा उत्तराफाल्गुनी น W " " " मूल पूर्वाषाढ़ा P पुनर्वसु " उत्तराषाढ़ा होता है । इत्यादि चन्द्रस्य पञ्चदशमार्गेषु अस्मिन्नस्मिन्मार्गे एतान्येतानि नक्षत्राणि तिष्ठन्तीति गाथायेाह * आर्द्रा " מ 31 得 พ " हस्त D " चित्रा 4 " · "D R 13 33 मणिव सादितरो य चंदभ्स पढममादि । तदिए मघापुणन्वसु सचभिए रोहिणी चित्ता ।। ४३७ ॥ अभिजनव स्वातिः पूर्वोत्तरा च चन्द्रस्य प्रथममार्गे । तृतीये मषापुनर्वसू सप्तमे रोहिणी चित्रा ।। ४३७ || 195 प्रभिमिरण। प्रभिजियानि नवस्वातिः पूर्वा उत्तर १२ चास्य प्रथममार्गोपरितनप्रदेशे चरन्ति । तृतीये मार्गे मघापुनर्वसू चरतः । समे मार्ग रोहिणी चित्रा च चरतः ।। ४३७ ।। चन्द्रमा के पन्द्रह मागों में से किस किस मार्ग में कौन कौन नक्षत्र स्थित हैं उन्हें तीन गाथाओं में कहते हैं : गावार्थ :-- अभिजित आदि, स्वाति, पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी से बारह नक्षत्र चन्द्रमा के प्रथम मार्ग में सवार करते हैं । मधा और पुनर्वसु तृतीय मार्ग में तथा रोहिणी और चित्रा सातवीं वीथी में सवार करते हैं ।। ४३७ ।। विशेषार्थ :- अभिजित् आदि नव, स्वाति, पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र चन्द्रमा की प्रथम वीथी के ऊपर जो परिधि है उसमें पधा और पुनर्वसु तीसरी बीथो में तथा रोहिणी और चित्रा सातवी वोथी में सवार करते हैं।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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