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________________ गापा : ४३१ ज्योतिर्लोकाधिकार ३७ प्राहियं । प्रषिकासावविशतिस्त्यापा। द्वितीयपञ्चमात्तिस्थाने एक मिक्षिप षष्ठे वशमेऽपि चावृतिस्पामे एकमपनेयं ॥ ४३१ ॥ मायार्थ :-गुणनफल फे अधिक अङ्कों में से २८ घटा कर, दूमरी और गांचवी आवृत्ति के गुणनफल में एक एक जोड़ कर, तथा छठवीं और दश वी आवृत्ति के गुणनफल में में एक एक घटाकर विपुपों के नक्षत्रों को प्राप्त करना चाहिये । ४३१ ।। विशेषार्ष:-विवक्षित आवृत्ति के नक्षत्र की अश्विनी से गिनने पर जो लमध प्राप्त हो उसमें ८ मिलाने पर यह पानफल से मध प्राप्त होता है, तो उसमें से २८ घटा कर शेषांकों को कृलिका नक्षत्र से गिनना चाहिए। जो नक्षत्र प्राप्त हो, वही विषुप का नक्षत्र होगा। जमे :- विवक्षित आवृत्ति चौथी है। इसका नक्षत्र शतभिषा है, जो अश्विनी से गिनने पर २५ वो है.+८= ३३-२८-५। कृतिका नक्षत्र से पांचवौ नक्षत्र पुनर्वसु है. अतः यही चतुर्थ विषुप का नक्षत्र है। अन्यथ भी ऐसा हो जानना । दुसरी और पांचवीं आवृत्ति के नक्षत्रों को अश्विनी से गिनने पर भी जो ध प्राप्त हो उसमें = जोड़कर, एक एक अङ्क और जोड़ कर कृतिका नक्षत्र मे गिनना । जो नक्षत्र प्राप्त हों वही दूसरे और पांचवें विषुप के नक्षत्र होंगे। जैसे -दूसरी आवृत्ति में हस्त नक्षत्र है, जो अश्विनी से , १३ वा है+5 = २१ + १-२२ हुए कृतिका नक्षत्र से २२ वा नक्षत्र धनिष्ठा है, और यही दूसरे विषुप का नक्षत्र है । इसी प्रकार ५ वें स्थान में जानना चाहिये । छठवीं और दशवी आवृत्ति के नक्षत्रों को अश्विनी मे गिनने पर जो जो लब्ध प्राप्त हो उममें ८ जोड़कर लब्ध में में एफ एक अङ्क घटा देने पर ओ जो अवशेष रहे. जसे कृतिका नक्षत्र से गिनने पर जो जो नक्षत्र प्राप्त हों वही छठवें और दश विपुप के नक्षत्र हैं। जैसे :- छठवी आवृत्ति में पुष्य नक्षत्र है, जो अश्विनी से ८ वा है,+८= १६-१-१५ हए । कृतिका नक्षत्र मे १५ वाँ नक्षत्र अनुगधा है, और यही छठवं विषुप का नक्षत्र है। इसी प्रकार १० स्थान में जानना चाहिए । यथा-- New निना IATMI :/ / Ltd.:. ran-r Raaz पाना.. Meer कान
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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