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________________ । ५३ । विषय ५६६ ५८६ माथा सं. ४१.-०१७ - विदेह की-नपरियों के मध्य म्लेच्छ सग के मध्य में स्थित, इषमावल पर्वत, . तथा मार्यों की राजधानियां व उनके नाम व विशेष स्वरूप ote-१९ नाभिगिरि पर्वतों के स्थान व उस्मेध आदि .. ७२०-४३. हिमवन आदि कुलाचल पौर विजयाओं पर स्थित कूटों की संख्या, प्राकार व नाममाधि पर्वत, कुण्ड, द नदियों आदि पर घेदिकामों की संख्या ५७ ७३२-७३। भरत ऐशवत क्षेत्र के विजयाओं के कूटों को उन पर. परिषत देव तथा जिनालय के उदय, व्यास और लम्बाई ७३७-७४४ गजहमत व वक्षार पर्वतों पर स्थित कुटों की संख्या व नामाथि ७४५-७४६ वक्षार पर्वतों की ऊँचाई, उन पर अकृत्रिम बस्यालय तथा कूटों की ऊंचाई ५८५ .७४७-७५० भरतादि क्षेत्रों में परिवार नदियों की संख्या ७५१-४५३. विदेह क्षेत्र में स्थित मैन, नयर, वन, पर्वतों, वड़ियों आदि का ध्यास .५४-७५५ घातकी खण्ड और पुष्कराचं द्वोपों में मेरु व मद्रशाल वनों का विदेह बेशों का म्यास .५६-७५७ ढाई द्रोणे के गजदन्त पवंतों का मायाम ७५-७६६ कुरुक्षेत्र की जीवा, चाप, वाण, तथा वृत्त-विष्कम्भ, क्षेत्रफल .. . ७६७-७६८ दक्षिण भरत. विजया, उत्तर भरतक्षेत्र, हिमवत आदि पर्वतों तथा हैमवत बादि क्षेत्रों के वाण का प्रमाण ७६-७७ दक्षिण भरतादि क्षेत्र और पर्वतों की जीवा व धनुष का प्रमाण ६०१ ७७ चूलिका व पाश्वभुजाका लक्षण व प्रमाण ७७२-७८५ भरतरावत क्षेत्रों में छह कालों का कपन ४८६-०६१ भोग भूमि व कल्प वृक्ष आदि का कथन १२-८.१ कम भूमि प्रवेश, कुलकरों का स्वरूप, उत्घ, बायु, परस्पर अन्तरकाल, दण्ड विधान व बनके कार्यों का कथन चतुर्थ काल में शलाका पुरुषों की गणना ५०४-८१३ तीर्थंकरों की अवगाहना, आयु. परस्पर अन्तर काल तथा तीर्थकाल' . ६३४ ८१४ जिनधर्म का उच्छेद काल ६३. ८५५-५२४ नाह चकियों के नाम, वतना कान, वर्ग, उत्सेध, मासु, मनिषि, चौदह रत्न, . किस पति को प्रात हुए . . . ६२२ २४ ६४०
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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