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विषय
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पाया सं0 ६३३-६३७ मेरु शिखर पर स्थित पांडक शिलामो के नाम व स्थान, किस क्षेत्र मे सम्बन्धित
हैं तथा शिलाओं का विन्यास व प्राकृति, सिंहासनों के स्वामी तथा सिंहासनों का विस्तार
५३० पर्वत कूट आदि की विशेषता
५३३ ६३९-६५० मम्बूवृक्ष के स्थानादिक व परिकार ६.५१-६५२ शाल्मली वृक्ष
५३८ ६५३ भोगभूमि और कर्म भूमि का विभाग ६४४-१५५ यमगिरि के स्थान, आकार, नाम Hशा सन्तान ६५६-६५९ मेरु पर्वत चारों दिशाओं में यमगिरि पर्वतों से पांचसो योजन दूर स्थित दह
और उनके तट पर स्थित काश्चन शैलों की संख्या व विस्तार ६६० द्रहों से मागे नदी का गमन का प्रमाण तथा तटों पर स्थित पर्वतों व सरोवरों
का कपन ६६१-६६२ दिमाज पर्वतों का स्थान तथा विस्तार आदि ६६३-६६४ पजत पर्वतों के नाम आदि ६६५-६७१ विदेह के देशों का विभाग तथा वक्षार, पर्वतों व विमंगा नदियों के नाम आदि
पर्वतों पर देव ६७२-६७३ देवारण्य वनों का स्थान बनमें वृक्ष सरोवर आदि ६४४-६७६ विदेह देशों के प्रामादि का लक्षण व विस्तार आदि
विदेह देशों में स्थित उपसमुद्रों के अम्पतर दोषों का कथन ६७६ मागध माधि तीन देवों के द्वीपों का कपम
५५३ ६७९-६८० विदेह क्षेत्र गत वर्षादि .
५५३ ६०१ . पंचमेह सम्बन्धी तोयंकर चक्रवर्ती, अपंचकी की उत्कृष्ट संख्या
५५४ ६८२ चक्रवर्ती को सम्पदा ६८३-६८५ राजाधिरान आदि राजाभों के लक्षण ६८६ तीर्थकर का विशेष स्वरूप ६५-६६४.. विदेह देशों के नाम तथा.. उनमें ना विभाजन तथा विभाजन करने वाले
विजया पर्वत व नदियां व विजया की दो बेणियो। 4६५-९ विदेह स्थित विजया की दक्षिया उत्तर श्रेणी पर स्थित नगरों की संख्या व माम बकोट कादि
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