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________________ । ५२ । २४१ ५४३ पाया सं. विषय ६३३-६३७ मेक शिखर पर स्थित पांडुक शिलामो के नाम व स्थान, किस क्षेत्र से सम्बन्धित हैं तथा शिलाओं का विन्यास व प्राकृति, सिहासनों के स्वामी तथा सिंहासनों का विस्तार पर्वत कूट आदि की विशेषता ६३९-६५० जम्बूवृक्ष के स्थानादिक व परिकर ५३४ ६५१-६५२ शाल्मलो वृक्ष ५३८ ६५३ भोगभूमि और कर्म भूमि का विभाग ५३॥ ६५४-६४५ यमगिरि के स्थान, आकार, नाम तथा अन्तराल ६५६-६५९ मे पर्वत चारों दिशाओं में यमगिरि पर्वतों से पांचसो योजन दूर स्थित द्रह और उनके तट पर स्थित काश्चन शैलों की संख्या व विस्तार ६६. द्रहों से आगे नदी का गमन का प्रमाणा. तथा तटों पर स्थित पवंतों व मरोवरों का कथन ६६१-६६२ दिग्गज पर्वतों का स्थान तथा विस्तार शादि ६६३-६६४ गजवन्त पर्वतों के नाम आदि ६६५-६७१ विदेह के देशों का विभाग तथा वक्षार, पर्वतों व विभंगा नदियों के नाम आदि पर्वतों पर देव ६७२-६७३ देवारण्य वनों का स्थान ननमें वृक्ष सरोवर आदि ६०५-६७६ विदेह देशों के ग्रामादि का लक्षण व विस्तार आदि ६७४ विदेह देशों में स्थित उपसमुद्रों के अभ्यन्तर दीपों का वन ५५२ ६७८ मागष आदि तीन देवों के द्वीपों का कपम ६७९-६८० विदेह क्षेत्र गत वर्षादि ६०१ पंचमेश सम्बन्धी तीर्थकर परवर्ती, अर्धचकी की उविष्ट सख्या ६८२ चक्रवर्ती को सम्पदा ६८३-६८५ राजाधिराज आदि राजाओं के लक्षण ६८६ मीपंकर का विशेष स्वरूप ६५०-६९४: विदेह देशों के नाम लथा. उनमें खपा विभाजन तथा विभाजन करने वाले विजयाचं पर्वत व नदियां. विजया की कोणियो । ६६५-.९ विदेह स्थित विजया की दक्षिण उत्तर श्रेणी पर स्थित नपरों की संन्या व माम व कोट धादि ५६२ - -
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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