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गावा सं
[ ५१
विषय
नरति ग्लोकाधिकार ६
४७७
नोट - [ द्वीप समुद्रों को संकपा, नाम, विस्तार, आकार, सूचो व्यास, वलयध्यास, परिधि, क्षेत्रक समुद्र जल का स्वाद तथा बस सहित या रहित, मत्स्यों को अवगाहना, मानुषोत्तर पर्वत व स्वयंप्रभ पर्वत. एकेन्द्रिय आदि ओवों को उत्कृष्ट अवगाहना, उनका क्षेत्रफल, विभिन्न तियंचों की उत्कृष्ट व जघन्य आयु तथा वेद के कथन के लिये गाथा ३०४-३३१ देखना चाहिये। द्वीप समुद्रों की संख्या का विशेष कथन ० ३४२-३६० जम्बूदीपस्थ भरतादि क्षेत्र व पर्वतों की शाका या० २७१ ]
५६१-५६२ नर तिर्यग्लोक में स्थित ४५८ जिन मंदिरों को नमस्कार
५६३
५. मेरा गिर
५६४-२७७ एक मेह सम्बन्धी ७ क्षेत्र, ६ कुलाचल पर्वत तथा उन पर सरोवर, उन सरोवरों में कमल, कमलों पर देवियों व परिवार देव
४७-४८१ महा नदियों के नाम, उभय तट, किस सरोवर से निकली है ५८२-५१६ गंगा नदी की उत्पत्ति आदि का विशेष कथन
सिन्धु नदी
पृष्ठ
५६७
४६८-६०२ शेष बारह नदियों का तथा तत् सम्बन्धित फुकाचल व सरोवरों, तोरण द्वार आदि का विस्तार आदि
६१७
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सं०
४७७
४८०
૪૧
४९३
५०१
५०२
६०३ - ६०४ शलाकामों द्वारा वर्ष ( क्षेत्र ) वर्षघरों के विस्तार का कथन ( या० ३७१ भी मी बाहिये )
५०५
६०५
५१०
विदेह क्षेत्र स्थित नगर, वलागिरि, विभंगा नदी, देवरादि वनों क लम्बाई ५१० २०६६०८ विदेह क्षेत्र स्थित मन्दरगिर, उस पर वन व वृक्षों का कथन ६०६ - ६१३ अन्य चार मेरा तथा तत् स्थित वन आदि के विस्तार आदि का कथन ६१४ - ६१६ चित्रा पृथ्वी के तक में मेद का व्यास, तथा नन्दन सौमनस आदि का व्यास तथा कहां परमे की ऊंचाई, हानिचय का कथन
५.१३
चारों घुल मेरु पर्वतों का हानिचय तथा विस्तार नादि पाचों मेरु की चूलिका
६१-६२३ नन्दन, सोमनस और पाथदुक वनों में स्थित भवनों के नाम, भवनों के स्वामी देव मोर जनकी देवांगना, आयु आदि, उन देव सम्बन्धित कल्पविमान ६२४ - ६२५ बंधन वन में कूट और उन पर रहने वाले व्यस्त देव तथा कुमारियां तथा वन में स्थित वापियां और बावड़ियों में प्रासाद
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