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गाथा सं०
विषय
पृ० स
५१५-५१८ इद्र के अवस्थान मण्डप का स्वरूप, उसमें स्थित बासन तथा मण्डप के द्वारों का विस्तार तथा आसनों की संख्या
४१-२२२ आस्थान मण्डप के अप्रस्थित मानस्तम्भ का स्वरूप तथा उस पर स्थित कन्हों
[ ५० ]
का स्वरूप
५२३
इन्द्र के उत्पत्ति ग्रह का स्वरूप
५२४-५२५ कल्पवासी देवांगनाओं के उत्पत्ति स्थान
५२६ कल्पवासी देवों के प्रत्रीचार ( काम सेवन ) का स्वरूप ५२०-५२८ वैमानिक देवों की विक्रिया शक्ति और ज्ञान का विषय
५२९-५३० वैमानिक देवों के तथा इन्द्र, पट्ट रानी, लोकपाल, त्रास्त्रिश, सामानिक, तनुरक्षक और परिषद देवों के जन्म मरण का उत्कृष्ट अन्तर
५३१
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कंसा मनुष्य कंदर्प, किश्विदिक और अभियोग्य को जधन्य आयु बांधकर कोन कौन से स्वर्ग तक उत्पन्न होता है
५३२
सौधर्म आदि युगलों में जघन्य व उत्कृष्ट आयु
५३३-५४१ घानायुक सम्यग्दृष्टि को प्रत्येक पटल में उत्कृष्ट वायु
५४१, १४३ ५४२
५३४- ५४० लौकान्तिक देवों के अवस्थान, नाम, संख्या, विशेष स्वरूप घातायुष्क सम्यग्दृष्टि व मिथ्यादृष्टि की आयु में विशेषता देवांगनाओं की अध्यु
५४३-५४४ देवों का उत्सेध, उच्छ्रत्रास काल व आहार काल ५४५-५४७ कोन जीव किस स्वर्ग तक उत्पन्न हो सकता है। ५४= देवगति से कर निर्वाण को जाने वाले
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मनुष्य, तियंच और भवनत्रिक से मानेवाले प्रेसठ शलाका पुरुष नहीं होते ५५०-५५३ देवों की उत्पत्ति स्थान तथा उत्पन्न होने के कार्य
कल्पवासी देव जिनेन्द्र महापूजा तथा पंचकल्याणकों में जाते हैं किन्तु अहमिन्द्र अपने स्थान पर ही नमस्कार करते हैं
देव सम्पत्ति किन जीवों को प्राप्त होती है
५५५
५५६-५५० अम पृथिवी सिद्ध शिला व सिद्ध क्षेत्र ५५९ - ३६०
सिद्धों का सुख
५. वैमानिक लोकाधिकार समाप्त
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