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________________ ज्योतिलोकाधिकार ३८५ गाया । ४२६ द्वितीय उदाहरण :- १० वीं आवृत्ति विवक्षित है, अतः ( १०- १ ) ६ + १ = ५५ + १५ ( ५५ राशि १५ से अधिक है, अतः १५ का भाग दिया ) = ३ लब्ध आया १० शेष रहे यही अवशेष १० दशवी आवृत्ति की दशमी तिथि है। तिथि संख्या है २० वीं शाति शुक्ल पक्ष की दशवीं तिथि को होगी । इसी प्रकार - ( १० – १ ) × ६ + ३५७÷१५ - ( ३ ) १२ अवशेष रहे और सम संख्या है, अतः १० व विधूप शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि को होगा। इसी प्रकार अभ्य आवृति एवं विषयों में तिथि एवं पक्ष का साधन कर लेना चाहिए । विषुपे नक्षत्राणां सर्वतिथीनां नानयनप्रकार माह- माउलिद्धरिक्खं दद्दजुद बदममगेगणं | इपे रिक्खा पण्णरगुणपच्चाजुदविही दिवसा || ४२६ || वृत्तिलक्षं दयुतं षष्ठाष्टदशमके एकोनं । विष ऋक्षारिण पश्चदश गुणवं युततिथयः दिवसानि ।। ४२ ।। भावट्टि प्रावृतो लग्नक्षत्रं वायुतं कृत्वा तत्र दशमावृती एकेनोनं चेत् विदुये नक्षत्रं स्यात् । पञ्चदशभिर्गुणितानि प्रावृत्तिविधुषयोः पर्यारण तसत्तिमियुतानि चेत् यथासंख्यमावृतिविषुषयोः समस्तदिनानि भवन्ति ॥ ४२६ ॥ विषय में नक्षत्रों की संख्या और सम्पूर्ण दिन प्राप्त करने का विधान : गाथार्थ :- आवृत्ति में जो नक्षत्र प्राप्त हो उसमें दश मिला कर छठवीं, आठवीं और दशवीं के आवृत्ति में एक अ कम कर देने पर विद्युप का नक्षत्र प्राप्त होता है, तथा आवृति एवं विषुप पर्वो के प्रमाण को पन्द्रह से गुणित कर लब्ध में अपनी अपनी तिथि का प्रमाण मिला देने पर क्रमशः वृत्ति और विधुपों के समस्त दिनों का प्रमाण प्राप्त हो जाता है || ४२६ ।। विशेषार्थ :- जिस आवृत्ति का जो नक्षत्र प्राप्त हो उसमें दश मिलाने से उसी नम्बर के विषूप का नक्षत्र प्राप्त होता है, तथा छटवीं, आठवीं और दशवीं आवृत्तियों में जो जो नक्षत्र प्राप्त है, उनमें एक अंक कम अर्थात् मिलाने से ६ में, ८ वें और १० वें विष्पों के नक्षत्र क्रमशः प्राप्त होते हैं। आवृत्ति के पर्वों में १५ का गुणा कर उसी आवृत्ति की तिथि संख्या जोड़ने से युग के प्रारम्भ से विवक्षित आवृति तक के समस्त दिनों की संख्या प्राप्त होती है। क्वों को १५ प्राप्त शे से गुणित करा तिथि संख्या जोड़ने से विषुप के समस्त जाता है । इसी प्रकार विषय के दिनों का प्रमाण उदाहरण १ :- प्रथम आवृत्ति का २० वौ अभिजित नक्षत्र है। इसमें १० मिलाने से २० + १० = ३० अर्थात् प्रथम विधूप का २ रा रोहणी नक्षत्र प्राप्त हुआ। इसी प्रकार २ री प्रावृत्ति ४९
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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