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त्रिलोकसार
पाषा : ४२८ विशेषार्थ :- जो विषुप इष्ट हो उसे दूना कर एक अङ्क कम करना, अवशेप में छह का गुणा करने पर पर्व संख्या प्राप्त होती है, तथा उसका आधा तिथि संख्या का प्रमाण है । जैसे :- प्रथम विषप इष्ट है । इसे दूना कर एक अङ्क कम करने पर (१४२-२-१)=१ अङ्क प्राप्त हुआ। इममें ६ का गुणा करने पर ( १x६) ६ ही माए और इसे आधा करने पर तीन प्राप्त हुए। यही प्रथम वि पुप के बीते हुए पदों की संख्या है, और प्रथम विषप तृतीया को होता है।
द्वितीय :-५ व विषप इष्ट है । ५४२-१०- १=t: ६ =५४२-२७ - १५=१ लब्ध और १२ अवशेष। ५४+ १ = ५५ पांचवें विषुप के बोते हुये पों की संख्या और द्वादशी तिथि का प्रमाणा प्राप्त हो गया। अन्यत्र भी इसी प्रकार जानना । अथाव निविषपयोस्तिथिसंख्यामाह
वेगपद छग्गुणं इगिनिजुदं आउटिइ सुपतिहिसंखा । विसमतिहीए किण्हो ममतिथिमाणो हवे सुक्को ।। ४२८ ।। ध्येकपदं पद्गुणं एकत्रियुतं आवृत्तिविषुपतिथिसंख्या ।
विषमतिथी कृष्णः समतिथिमानो भवेत् शुक्लः ।। ४२८ ।। वेगपत्र । एकहीनमातिपदं षभिगुणयिवा अभयत्र संस्थाप्य तस्मिन्नेकयुते पति परस्मिन् त्रियुते सति यथासंस्थमावृत्तिविषपयोस्तिथिसंश्या स्यात् । तयोर्मध्ये शिवमतियो सस्या कृष्णपक्ष: स्यात् । समतिथिप्रमाणे शुक्लपक्षो भवेत् ।। ४२८ ।।
भावृत्ति और विषप में तिथि संख्या लाने का विधान
गाथार्य :-एक कम आवृत्ति के पद को छह से मुणित करके उसमें एक अङ्क मिलाने पर आवृत्ति की तिथि संख्या और उसी लब्ध में तीन मिलाने से विषुप की तिथि संख्या का प्रमाण प्राप्त हो जाता है। इनमें तिथि संस्पा के विषम होने पर कृष्ण पक्ष और सम होने पर शुक्ल पक्ष होता है ॥ ४२० ॥
विशेषार्ष:-जो विवक्षित छावृत्ति हो उसमें एक घटा कर लब्ध को छह से गुणा करके दो जगह स्थापन कर एक स्थान पर एक का अङ्क और दूसरे स्थान पर ३ जोड़ देने से क्रमश: आवृत्ति की तिथि संख्या और विषुप की तिथि संख्या प्राप्त हो जाती है। यदि लिथि संख्या विषम है तो कृष्ण पक्ष और सम है तो शुक्ल पक्ष समझना चाहिए । जैसे :- प्रथम आवृत्ति विवक्षित है, अतः १-१-०४६-०+१-१ तिथि अर्थात प्रथम आवृत्ति की प्रतिपदा तिथि है। यह तिथि संख्या विषम होने से कृष्ण पक्ष है । अर्थात् प्रथम झाब ति कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को हुई है। १-१= ४६=o+३=३ तिथि संग्या। यह तिथि संख्या विषम होने से कृष्ण पक्ष है। अर्थात् प्रथम बिएप कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को होगा।