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गाथा : ४२
ज्योतिर्लोकाधिकार
३५३
पपं संख्या विधुप संख्या गतपर्व संम्न्या
__ मास पक्ष । तिथि
नक्षत्र
(६वा
व
'३ "
पवम"
(१ना के व्यतीत होने पर कि ! ! तृतीया | रोहणी के योग में प्रथम वर्ष
१२ रा १८ . . . , वंशान ", | नवमी | पनिष्ठा , , ,
(३रा ३१ ॥ - * - कातिक , प्रमावस्या स्वाति , , , द्वितीय,
वैशाख | शुक्ल ॥ | षष्ठी । पुनर्वसु . . .
कातिक | . . द्वादशी |उत्तराभाद्रपदके यो में तृतीय ,
पैशाख | well n तृतीया । अनुराधा n n n ___० ॥
कातिक
नवमी मघा " " चतुथं "
वैशास्त्र
अमावस्या अश्विनी " . ( १०५ " " " " शुक्ल । । षष्ठो उत्तरापाठाके योगमें (१७ वा ११७ ॥ " " | वैशाख | ॥ | द्वादशी | उत्तराफाल्गुनी । " अय विषुपे पर्व तिथ्यानयनसूत्रमाह
विगुणे मगिट्ठइसुपे रूऊणे छग्गुणे इवे पर्व । तपन्यदलं तु निधी पबमाणम्स इसुपरस || ४२७ ॥ द्विगुणे १३ष्टविषुपे रूपोने घाइ गुरणे भवेत् पर्व ।
तत्पवंदलं तु तिथिः प्रवत्तंमानस्य विषुपस्य ।। ४२७ ।। विगुणे। द्विगुणे स्वकीयेष्ठविषपे रूपोने षभिणिते सति पसंख्या भवेत् । तपबल. प्रमाणे प्रवर्तमानस्य विषुपस्य तिथि: स्यात् । तस्मिन्पविसे पनवशभ्यः प्रषिके सति तमेवरवा लम्भ पर्वणि मेलयेत् । प्रवशिष्ट तिपिप्रमाणं स्यात् ।। ४३७ ।।
त्रिषुप में पत्र और तिथि प्राप्त करने के लिए सूत्र कहते हैं :
गायार्थ :-दुगुणे विषुप में से एक अङ्क कम करके शेष को छह से गुणित करने पर पर्व का प्रमाण प्राप्त होता है, तया पर्व के प्रमाण को आधा करने से वर्तमान विषुप की तिथि संख्या प्राप्त होती है। [ यदि वह पर्व का आधा भाग १५ से अधिक हो तो उममें १५ का भाग देने पर जो लब्ध प्राप्त हो उसे पर्व मंख्या में जोड़ कर शेष को तिथि का प्रमाण समझना चाहिये ] ।। ४२॥