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________________ ३८० त्रिलोकसाय गाथा : ४२१ पूरिणमा और अमावस्या होती है, उसका नाम पर्व है। यह प्रथम आवृत्ति दक्षिणायन के प्रारम्भक प्रथम श्रावण मास में कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के समय होती है। वहाँ युग का प्रारम्भ हो है, अतः पर्य का अभाव है। द्वितीय उदाहरण :-यदि द्वितीय आवृत्ति को विवक्षा है तो दो में से एक घटान पर (२-१=१ शेष रहता है। उसको १८३ से गुणित करने पर { १४१८३)-१८३ ही प्राप्त होते हैं। गुणकार १ था, इसका तिगुणा ३ मिलाने पर (१५३+३ ) - १८६ हुए। उममें एक और जोडकर १५ का भाग देने पर १८६+ - १२ लब्ध और ७ अवशेष की प्राप्ति हुई। अर्थात द्वितीय मावृत्ति में १२ पर्व और सप्तमी तिथि प्राप्त होती है। यह द्वितीय आवृत्ति उत्तरायण का प्रारम्भ हो जाने पर प्रथम माघ मास में कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि के समय होती है, तब तक युग के प्रारम्भ से १२ पर्व व्यतीत हो जाते हैं। तृतीय उदाहरण :-पहा तृतीय आवृत्ति की विवक्षा है, अत: ३–१ = २ । १८३ x ३३६६ + (२४३ =३७२ । ३७२+१=२४ लब्ध और १३ शेष । इस प्रकार यह तृतीय आवृत्ति दक्षिणायन के प्रारम्भक द्वितीय श्रावण मास में कृष्ण पक्ष की प्रयोदशी तिथि के समय होती है, तब तक युग के प्रारम्भ से २४ पवं व्यतीत हो जाते हैं। इसी क्रम से अन्य आवृत्तियों में भी पर्व और तिषि की साधना कर लेना चाहिए। अथ समानदिनरात्रिलक्षणे विषुपे वंतिथिनक्षत्राणि गाथाषट्केन दशस्यनेष्वाह छम्मासद्धगयार्ण जोइसयार्ण समाणदिणरची । इसुपं पढम छसु पब्बसु तीदेसु तदियरोहिणिए । ४२१ ।। षण्मासाधंगतानां ज्योतिष्कारणां समानदिनरात्री। तत् विषुपं प्रथम षट सु पर्वसु अतीतेषु तृतीयारोहिण्याम् ।।४२१॥ छुम्मासर। अपनलक्षणषण्मासाउंगताना ज्योतिडकाणां समानविमरात्री भवतः । तव विषुपमित्युध्यते । तत्र प्रपमं विषुपं षट्स पर्वस्ववीतेष तृतीयायां तिषौ रोहिणी नक्षत्रे भवति ॥ ४२ ॥ समान दिन रात्रि है लक्षण जिसका ऐसे विषुप में पवं, तिथि और नक्षत्रों को छह गाथाओं द्वारा युग के दश अयनों में कहते हैं : गापा :-ज्योतिषो देवों के छह माम ( एक अयन ) के अधं भाग को प्राप्त होने पर जिस काल में दिन और रात्रि का प्रमाण बराबर होता है, उस काल को विषुप कहते हैं। यह प्रथम रिषुप ६ पवा के बीत जाने पर तृतीया तिथि में रोहणी नक्षत्र के समय होता है ।। ४२५ ॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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