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गाथा.४२० ज्योतिलोंकाधिकार
३७१ उत्तराषाढ़ा प्राप्त होता है, किन्तु सूक्षमता मे अभिजिस् नक्षत्र ही बतलाया गया है। आगे कहीं इसका ग्रहण नहीं करना। इस प्रकार दक्षिणायन के प्रारम्भ में प्रथम प्रावण मास में नक्षत्र प्राप्त करने का विधान किया।
द्वितीय उदाहरण :-दूसरी आवृत्ति विवक्षित है। इसमें से एक घटा देने पर एक शेष रहा। इसको १०१ से गुणा करने पर १८१ हो रहे । इस १८ गुणन फल में २१ जोड़ने से २०२ हुए । इनको तीन के घन स्वरूप २० से भाजित करने पर अवशेष तेरह ( १३ ) रहते हैं। यथा :-(२-१)१४१८१-१८१+२१=२०२६ २७ = १३ अवशेष रहे। इस प्रकार द्वितीय आवृत्ति में अश्विनी से लेकर १३ वा हस्त नक्षत्र है, अतः उत्तरायण के प्रारम्भ में प्रथम माघ मास में हस्त नक्षत्र प्राप्त होता है। इसी प्रकार ३ री, ५ वीं, ७ वीं और ९ वी आवृत्तियों में दक्षिणायन के प्रारम्भक श्रावण मास में और ४ थी, ६वी, ८ वीं एवं १० वी आवृत्तियों में उत्तरायण के प्रारम्भक माघ मास में नक्षत्रों का साधन करना चाहिए । अथ दक्षिणोत्तरायणानां पतिथ्यानयनसूत्रमाह
वेगाउटिगुण तेसीदिमदं महिद निगुणगुणरूवे । पण्णरभाजिदे पच्चा सेसा तिहिमाणमयणस्म ॥ ४२ ॥ व्येकावृत्तिगुणं ज्योतिशतं सहितं त्रिगुणगुणरूपेण ।
पञ्चदशभक्त पर्वाणि शेषं तिथिमान अयनस्य ।। ४२० ।। वेगाउट्टी। विगतकावस्या गुणितं पशीतियतं त्रिगुणगुणकारेण प्रथमे शून्येन सीयारो त्रिगुणितविगतकापल्या सहितमित्यर्षः रूपेण च सहित यसस्मिन् पञ्चशभिर्भत ति लम्ब पारित। पत्र मागाभावात्पर्धाभावः अवशेष १-तिथिप्रमाणं दक्षिणोत्तरायणस्य ॥ ४२० ।।
दक्षिणायण उत्तरायण के पर्व और तिथि प्राप्त करने के लिए सत्र कहते है ।
पापाय :-एक मो तेरासी को एक कम विवक्षित मावृत्तियों से गुणित कर पश्चात् उसमें तिगुणा गुणकार और एक अङ्क मिलाकर पन्द्रह का भाग देने पर जो लब्ध प्रात हो वह वर्तमान अयन के पर्व तथा जो अवशेष रहे वह तिथियों का प्रमाण होता है ।। ४२० ।।
विशेषार्थ:-जैसे यदि प्रथम आवृत्ति की विवक्षा है, तो एक में से एक घटाने पर शून्य श्रेष रहता है। (१-१-.) इससे १८३ को गुणित करने पर शून्य ही प्राप्त होगा-- (१८३४०.)। इसमें तिगुणा गुणकार ( ०४३=0) जोड़ने से भी शून्य ही प्राप्त होगा। इसमें एक अङ्क मिलाने पर (.+1)=१ प्राप्त हा इसमें १५ का भाग जाता नहीं, इसलिए पर्व का अभाव रहा। अवशेष एक ही है, अतः कृष्ण पक्ष को प्रतिपदा को प्राप्ति हुई। पक्ष के पूर्ण होने पर जो