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बिलोकसार
उत्तरायण में आवृत्तियां कसे होती है ? उन्हें कहते है -
गार्थ :- माघ कृष्णा ससमो को इस्तनक्षत्र के योग में सूर्य दक्षिणायन को छोड़ कर उत्तरायण में जाता है, यह प्रथम आवृत्ति है । माघ शुक्ला चतुर्थी को शतभिषा नक्षत्र के योग में दूसरी आवृत्ति होती है, तथा तीसरी आवृत्ति माघ कृष्ण प्रतिपदा को पुष्य नक्षत्र के रहने पर होती हैं। चौथी आवृत्ति माघकृष्ण त्रयोदशी को मूल नक्षत्र में, और पांचवीं आवृति माघ शुक्ला दशमी को कृतिका नक्षत्र के योग में होती है ।। ४१६ ४१७ ।।
विशेषार्थ :
दक्षिणायन
३७६
वृत्ति
क्रम
१ ली आवृत्ति
३ री
6
५. वीं "
वर्ष
मास
सूर्य
तिथि
नक्षत्र
प्रथम प्रवि
वर्ष कृष्णा
द्वितीय प्रा०कु० त्रयोदशी म
तृतीय आ० शु० दशमी विशाखा
७ बीं" चतुर्थं घा० कृ० सप्तमी रेवती
६ वीं
मा० शु० चतुर्थी पूर्वाफाल्गुनी
आवृत्ति
क्रम
प्रतिपदा अभिजित २ रो
४ थी
६ वीं
वीं
१० वीं
उत्तरायण
वर्ष
मास
प्रथम
. याया ४१८
सूर्य
तिथि
माघ
सप्तमी हस्त
कृष्णा
द्वितीय मा० शु० चतुर्थी शतभिया
तृतीय मा० कृ० प्रतिपदा पुण्य
चतुर्थ मा० कृ० | योद|| मूल
पचममा० शु० दशमी कृतिका
ताओ उतरणं पंचसु वासेसु माघमासेसु ।
आउट्टीओ भणिदा सूरसिंह पुत्रसूरीहिं ॥। ४१८ ॥ ताः उत्तरायणं पञ्चसु वर्षेषु माघमासेषु ।
आवृत्तयः भणिताः सूर्यस्येह पूर्व सूरिभिः ॥ ४९८ ॥
नक्ष
उपर्युक्त पांच वर्षों में युग समाप्त हो जाता है, तथा छठवें वर्ष से पूत ही व्यवस्था पुनः प्रारम्भ हो जाती है। हमेशा दक्षिणायन का प्रारम्भ प्रथम दीधी में और उत्तरायण का प्रारम्भ अन्तिम बोथी से होता है ।
उक्तार्थं
पति