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________________ चाचा । ४१५-४१६-४१७ एतावता किं स्यादिति चेत् ज्योतिलोकाधिकार दविणणे पंचसु सावणमासे पदाओ मणिदाओ पंचणिपट्टी पंचत्रस्से | सुरस || ४१५ दक्षिणायने पचसु श्रावणमासेषु वर्षेषु । एताः भरिणताः पख निवृत्तयः सूर्यस्य ॥ ४१५ ॥ पिय । वरिगापने पञ्चसु भावणमासेषु पञ्चवर्षेषु एताः पञ्च निरायः सूर्यस्य भरताः ॥ ४१५ ॥ उत्तरावृत्तिः कथमिति चेत् ३७५ इनसे क्या होता है ! उसे कहते हैं गाथायें :-- [ इस प्रकार | पाँच वर्षो के भीतर पाँच श्रावण मासों में दक्षिणायन सम्बन्धी सूर्य की पाँच आवृत्तियाँ कही गई है ।। ४१५ ।। विशेषार्थ :- पाँच वर्षों तक प्रत्येक श्रावणमास में दक्षिणायन सम्बन्धी एक आवृत्ति होती है इस प्रकार पांच वर्षों में पांच आवृत्तियाँ होती हैं। माघे समिक इथे विणिवित्तिमेदि दक्खिनदो | विदिया सदसिक्के चोत्थीए होदि तदिया हु ।। ४१६ ।। useदि कि पुस्से चोत्थी मुले या किल्तेरसिए । किचियरिक सुक्के दसपी पंचमी होदि ॥ ४१७ ॥ माघे सप्तम्यां कृष्णे हस्ते विनिवृति एति दक्षिणता । द्वितीया शतभिषि शुक्ल चतुर्थ्यां भवति तृतीया तु ॥ ४१६ ॥ प्रतिपदि कृष्णे पुष्ये चतुर्थी मूले च कृष्णत्रयोदश्याम् । कृतिकाऋक्षे शुक्ले दशम्यां पचमी भवति ॥ ४९७ ॥ माधे सति । माघमासे सप्तम्यां तिथौ कृष्णपक्षे हस्तनक्षत्र विभिवृत्तिमेति दक्षिणायनतः द्वितीयावृतिः शतभिग्नक्षत्रे शुक्लपक्षे चम्पतियों भ तृतीया रावृतिः ॥ ४१६ ।। पधि । कृष्णपक्षे प्रतिपदि तिथो पुष्यनक्षत्रे स्याय, चतुर्थ्यावृति कृष्ण त्रयोद भूलनक्षत्रे स्यात्, शुक्लपक्षे दशम्य कृतिका नक्षत्रे पञ्चमी प्रावृत्तिर्भवति ।। ४१७ ।।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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