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________________ गाथा : ४०६ ज्योतिर्लोकाधिकार ३६६ इनमें प्रत्येक के गगन खण्ड २०१० और प्रत्येक का भुक्तिकाल दिन है, तथा सातों का (x) दिन है। उत्तराफाल्गुनी, विशाखा और उत्तराषाला ये सीन उत्कृष्ट नक्षत्र हैं । इनमें प्रत्येक के गगनखण्ड ३०१५ और प्रत्येक का भुक्तिकाल २१ दिन है, तथा तीनो का भुक्तिकाल (२०१४)-१११ दिन है। इन सब मुक्तिकालों को जोड़ने से दक्षिणायन में १८३ दिन होते हैं। यथा-+ +1234 दिन अर्थात पुष्यनक्षत्र एवं आयषा से उत्तराषाढ़ा क्यन्तु दक्षिणायन में सूर्य के कुल १८३ दिन होते हैं । उत्तरायण में चन्द्र द्वारा नक्षत्रभुक्ति के दिनों का प्रमाण : चन्द्रमा के उत्तराम में सर्व प्रथम आमाक्ष की मुक्ति होती है। इसका मुक्तिकाल ३.७ दिन है। इसके बाद चन्द्र श्रवण से पुनर्वसु नक्षत्रां पर्यन्त कम मे भागता है। इनमें शतभिषा, भरणी और आर्द्रा ये तीन जघन्य नक्षत्र हैं। इनमें प्रत्येक का भुक्तिकाल ( 4) दिन है, अतः तीन नक्षत्रों का (३४३ - १६ दिन हुआ। श्वण, धनिष्ठा, पूवभिाद्रपद, रेवती, अश्विनी, कृतिका, और मृगशीयों ये ७ मध्यम नक्षत्र हैं। इनमें प्रत्येक का भुक्तिकाल (33)-१ दिन है, अत: ७ नक्षत्रों के ७ दिन हुए। इसी प्रकार उत्तराभाद्रपद, रोहणी और पुनर्वसु ये तीन उत्कृष्ट नक्षत्र हैं, इन में प्रत्येक का मुक्तिकाल (18)=१३ दिन है. अतः तीन नक्षत्रों के (३xx दिन हए। इसके बाद पुष्य नक्षत्र को चन्द्रमा एक दिन मे भाग पर्यन्त भोगता है। क्योंकि-पुष्य नक्षत्र को सूर्य जवकि ५ दिन में भोगता है, तब चन्द्रमा उसे १ दिन में भोगता है तब यदि सूर्य २३ दिन में भोगता है, तो चन्द्र कितने दिनों में भोगेगा ? इस प्रकार शशिक करने पर ( x)= दिन पुष्य नक्षत्र का भुक्तकाल प्राप्त होता है और इन सबका योग ( + +१३++४६ )-१३४ दिन होता है। इस प्रकार उत्तरायण चन्द्र का नक्षत्रों का भुक्तिकाल १३१४ दिन है। दक्षिणायन चन्द्र का नक्षत्र भुक्तिकाल : दक्षिणायन में चन्द्रमा सर्व प्रथम पुष्य नक्षत्र को भोगता है। पुष्य नक्षत्र का " भाग उत्तरायण मे भोगा जा चुका है. अतः अवशेष बचा ४ भाग हो यहाँ भुक्ति काल है। यह भाग लेकर दक्षिणायन को मादि स्वरूप दक्षिणायन के प्रथम कोष्ट में देना चाहिये । इस प्रकार पुष्य नक्षत्र का भोग समाप्त हो जाने के बाद चन्द्र म पूर्वक आश्लेषा से उत्तरापाढ़ा पर्यन्त नक्षत्रों का भागता है, इनमें तोन जघन्य नक्षत्रों का भुक्तिकाल (1833 ) १२, दिन सात मध्यम नक्षत्रों का भुक्तिकाल २ -७ दिन और ३ उत्कृष्ट नक्षत्रों का भुक्तिकाल 34 =३ दिन है । इस प्रकार है।।१३+४+४३- १३१४ दिन दक्षिणायन में चन्द्रमा द्वारा नक्षत्रों का मुक्तिकाल है।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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