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त्रिलोछः
एवमइले राधाकान्तानामावित्यभुतिमामीय तत्र तत्र नक्षत्र संस्थापयेत् । एवममितिश्चन्द्रस्य भुक्तिमानीय सहच जघन्यमध्यमोत्कृष्ट नक्षत्राणां मध्ये श्रवणादिपुनर्वस्वन्तान भुक्ति सप्तष्ट सर्वत्र साप त्रिशद्वारं जघन्योत्कृष्टानां पचदशभिरवत्यं मध्यमानां तु त्रिशापव
तत्र तत्र नक्षत्र स्वापयेत् पुष्यस्य तु मावित्यस्ता भुक्तौ चन्द्रस्य यवेषं दिनं तदा पुरुये श्रावित्यस्यैतावमुक्ती चन्द्रस्य किमद्भुक्तिरिति सम्पास्यापत्यं प्रातां मुक्ति पुष्ये स्थापयेत् । एवं दक्षिणायने कर्तव्यम् । एवं राहोरभिजिवादिपुनर्वस्वन्तान भुक्तिमात्रीय तंत्र छत्र नक्षत्र स्थापयेत् । पुष्येतु राहुभुति प्राविश्यस्यैतावमुक्त राहोयंवेतावन्ति दितानि तवा पुष्ये प्रादित्यस्यैतावत राहोः किमद्भुक्तिरिति सम्पास्यापवतीय उत्तरायणसमाप्ती पुष्ये स्थापयेत् प्राग्यद्दक्षिणायने कर्त्तव्यम् । एवमानीतेपु चन्द्रस्य नक्षत्रमुक्ति दिनेषु सर्वेषु समीकृत्य मिलितेषु पवनदिनानि १३ भा डे भवन्ति उभयायन मेलने वर्षादनानि २७ मा दे भवन्ति । एवमावित्यस्यायनबिनाति १८३ वर्षविनानि च ३६६ पानतव्यानि एवं राहोश्चायन विनामि १० वर्षदिनानि च ३६० पानेतव्यानि ॥ ४०६ ॥
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पुष्यनक्षत्र में जो विशेषता है, उसके प्रतिपादन हेतु कहते हैं
गाथार्थ :- पुष्यनक्षत्र में पांच भागों से तीन भाग सहित चार (४३) दिन जाकर उत्तरायण की परिसमाप्ति होती है। श्रावण कृष्णा प्रतिपदा के दिन अभ्यन्तर दोथी में पुष्यनक्षत्र का शेष ४ भाग दक्षिणायन का आदि है अर्थात् दक्षिणायन का प्रारम्भ होता है ।। ४०१ ॥
विशेषार्थ :- पुष्य नक्षत्र मध्यम है अतः इसके गगनखण्डों का प्रमाण २०१० है । ५ गगनखण्डों के प्रति सूर्य को १ मुहूर्त लगता है, तब २०१० गगनखण्डों के प्रति क्या लगेगा ? इस प्रकार पूर्ववत् सम्पूर्ण किया करने से (2) दिन सूर्य द्वारा पुष्य नक्षत्र का भुक्तिकाल प्राप्त होता है | इसमें पांच भागों में से तीन भाग सहित चार दिन अर्थात् घटा कर उत्तरायण की परिसमाप्ति में देकर शेष (--) में से पुनः लेकर दक्षिणायन की आदि स्वरूप दक्षिण के प्रथम कोष्ठ में देना चाहिये । यही श्रवणकृष्णा के दिन अभ्यन्तर ( प्रथम ) बोथो में दक्षिणायन की आदि है। अवशेष बचे को द्वितीय कोश में देना चाहिये। इस प्रकार दक्षिणायन के प्रारम्भ में प्रथम पुष्य नक्षत्र का भोग समाप्त हो जाने के बाद कम से आश्लेषा, मघा पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा इन नक्षत्रों को भोगना है। इनमें से आदलेषा, स्वाति और ज्येष्ठा ये तीन नक्षत्र जघन्य हैं। इनमें प्रत्येक के गगनखण्ड १००५ हैं। अतः प्रत्येक का भुक्तिकाल दिन और तीनों का (x)=२०
दिन है। मघा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल और पूर्वाषाढ़ा ये सान मध्यम नक्षत्र हैं,