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________________ गाषा । ४०६ ज्योतिर्लोकाधिकार अधिक दिनों की उत्पत्ति कहते हैं गाथा :- एक पथ ( वीथी ) उल्लङ्घन के प्रति यदि एक दिन का इकसठ () भाग उपलब्ध होता है, तो एकसौतेरासी पथ ( वीथियों) के उल्लङ्घन में क्या प्राप्त होगा ? इस प्रकार भाग को १८३ से गुणित करने पर अधिक दिनों की प्राप्ति होती है ॥ ४०८ ॥ विशेषार्थ:-- सूर्य द्वारा एक पथ उल्लङ्घन करने में यदि दिन की प्राप्ति १८३ वीथियाँ उल्लङ्घन करने के प्रति कितने दिनों की उपलब्धि होगी ९ इस प्रकार पर ( ८ × १६१ ) = ३ दिन अर्थात् ३ दिन अधिक प्राप्त होते हैं। ३६७ होती है, चन राशिक करने एक अयन में १६३ दिन हो कैसे होते हैं ? इस प्रकार पूछने पर कहते हैं : सूर्य के एक मुहूर्त के गमन योग्य गगनखण्ड १८३० और नक्षत्रों के १८३५ हैं। जबकि सूर्य को नक्षत्र के ५ गण्ड छोड़ने में एक मुहूर्त लगता है, अर्थात् ५ गगनखण्डों के प्रति यदि एक मुहूर्त है, तो अभिजित् नक्षत्र के ६३० गगनखण्डों प्रति क्या होगा ? अर्थात् कितने मुहूर्त होंगे ? इस प्रकार शिक करने पर मुहूर्त होते हैं, इनको ३० का भाग देकर ऊपर नीचे ३० से अपवर्तित करने पर दिन अभिजित् नक्षत्र का भुक्तिकाल प्राप्त होता है। इसी तीन जघन्य नक्षत्रों का मुक्तिकाल है। इन्हें १५ से अपवर्तित करने पर श्रवणादि सात मध्यम नक्षत्रों में से प्रत्येक का मुक्तिकाल 33 है, इन्हें ३० से * दिन प्राप्त हुये। इसी प्रकार उत्तराभाद्रपदादि तीन उत्कृष्ट नक्षत्रों में से xx प्रकार शतभिपादि 723 है, इन्हें १५ से अपवर्तित करने पर दिन प्राप्त होते हैं । 'A X3= अथ पुष्येतु विशेषप्रतिपादनार्थमाह- दिन प्राप्त हुए । अपवर्तित करने पर प्रत्येक का मुक्तिफाल सतिपंचमचउदिवसे पुस्से गमियुत्तरायणयमनी | सेदखि मादीसावणपडि वदि रविस्स पढमपहे ।। ४०९ ।। समचतुदिवसान् पुष्ये गत्वा उत्तपायल्समाप्तिः । शेषात् दक्षिणादिः श्रावणप्रतिपदि रवेः प्रथमपथे ॥ ४०६ ॥ सतिपंचम | त्रिपक्ष चतुविषसान् पुष्ये गरवा उसरावरणसमाप्तिरिति कृत्वा प्राग्वत्यनक्षत्र विनाभ्यातीयतेभ्य समच्छेवीकृतात्रिपञ्चमचतु दिवसान् प्रपनीय उत्तरायणमा स्वा शेषेभ्यः ४ कोष्ठपूर्णार्थं तावदेवा ३ पनोय दक्षिणायनप्रथम कोष्ठे दत्ते सति इवमेव बावरणमासे प्रतिपदि रवेः प्रथमपथे दक्षिणायनस्यादिः प्रवशिष्टशेषान् द्वितीयकोष्ठे बचात् ।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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