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________________ त्रिलोकसार एक अयन में नक्षत्र-मुक्ति सहित मोष रहित दिनों का प्रमाण कहते हैं नाथार्थ :- अभिजित् यादि नक्षत्रों के उत्तरायण में एक सीतैरासी दिन होते हैं। इनसे अतिरिक्त अन्य अधिक दिन किसने होते हैं ? एक अयन में तीन गतदिवस होते हैं ॥ ४०७ ।। ३६६ पापा : ४०८ विशेषार्थ :- सूर्य के उत्तर में की मुक्ति होती है। इसका काल दिन है। इसके आगे क्रम मे श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती, अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशीर्षा, आर्द्रा, पुनर्वसु और पुष्य नक्षत्र की मुक्ति होती है। इनमें से शतभिषा, भरणी और आर्द्रा ये तीन जघन्य नक्षत्र है। इनमें प्रत्येक का मुक्तिकाल दिन है। अर्थात् तीन नक्षत्रों का ( ३ ) - दिन है। श्रवण घनिष्ठा पूर्वाभाद्रपद, रेवती, अश्विनी, कृतिका और मृगशीर्षा ये सात मध्यम नक्षत्र है। इनमें प्रत्येक का भुक्तिकाल में दिन है, अतः ७ नक्षत्रों का ♛ × दिन हुआ तथा उत्तराभाद्रपद, रोहिणी. पुनर्वसु ये तीन उत्कृष्ट नक्षत्र है। इनमें प्रत्येक का भुक्तिकाला दिन है, अतः ३ नक्षत्रों का x ३ = दिन हुआ । इसके बाद पुष्य नक्षत्र का मुक्तिकाल दिन है, किन्तु उत्तरायण में पुष्यनक्षत्र का भुक्तिकाल मात्र दिन ही है, त+++++-- १०३ दिन अर्थात् अभिजित आदि जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट नक्षत्रों के उत्तरायण में १५३ दिन होते हैं। इनसे अतिरिक्त अधिक दिन किसने होते हैं ? एक अयन में तीन गतदिवस होते हैं । धाषिकदिनानामुत्पत्तिमाह---- एक्कपद्दलंघणं पहि नदि दिवसमभागमुलद्धं । किं सीदिसदस्सिदि गुणदे ते होंति अहियदिना ॥ ४०८ ॥ एकपथलङ्घनं प्रति यदि दिवसक पष्टिभागमुपलब्धं । कि व्यशीतिशतस्येतिगुणिते ते भवन्ति अधिक दिनानि ॥ ४०६८६ ॥ एक्कर । एकपपलङ्घनं प्रति यदि दिवसेकषष्टि भाग उपलभ्यते तदा। व्यशीतित १८३ विवसानां किमिति सम्पात्यं कवट्या नियंगपवश्यं गुणिते प्रविविनानि भवन्ति । एकस्मिन्नयमे कथं प्रयशीतिशत दिनानोति चैष धावित्यस्य नक्षत्रातु पश्चडापसरले एकस्मिन्मुहूर्ते सति प्रभिजित वडा ६३० पर कियन्तो मुहूर्ता इस्यागतान्मुहूर्तान् पुन राशिकेन विनानि कृत्वा $30 अब उपरि त्रिशतापवलम्बमिवं प्रभिथिति संस्थाप्यं । एवं जघन्यमध्यमोत्कृष्टनअत्राणां मवाजिपुनर्वस्वलाना में राशिकविधिना मुहूर्तान् विनानि च कृत्वा यथासंख्यं पववश म १५३० शनि १५ श्रपत्यं सधं तत्र तत्र नक्षत्र स्थापयेत् ॥ ४०८ ॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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