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त्रिलोकसार
था:४०९
उत्तरायण राह का, नक्षत्र भुक्तिकाल :
उत्तरायण में राहु सर्व प्रथम अभिजित् नक्षत्र को भोगता है। इसका भुक्तिकाल १५ दिन है। इसके आगे धवण से पुनर्वसु पर्यन्त नक्षत्रों की भुक्ति क्रम से होती है। इनमें से उपयुक्त तीन जघन्य नक्षत्रों का भुक्तिकाल (११४) १३६' दिन, सात मध्यम नक्षत्रों का भुक्तिकाल ( ८०४x७ )= १८ दिन, और तीन उत्कृष्ट नक्षत्रों का भुक्तिकाल ( १२११४)= 48 दिन है। पुष्य नक्षत्र का भुक्तिकाल-जवकि पुष्य नक्षत्र पर सूर्य का दिन का भोग होता है. तब राहु उसे
दिन भोगता है, तो जब यूयं दिन भोगता है. तब राहु कितने दिन भोगेगा? इस प्रकार अंगशिक करने पर ( XX.२%)- दिन में उत्तरायण की समाप्ति हो जाती है। अर्थात् उत्तरायण राह पुष्य नक्षत्र को दिन भोगता है, अतः-३५३+२+३+ +
१-१२१८० अर्थात् १८० दिन उत्तरायण राहु द्वारा नक्षत्रों का भुक्तिकाल है।
दक्षिणायन राह का भुक्तिकाल :
दक्षिणायन में सर्व प्रथम पुष्य के भक्तिकाल में अवशेष रहे ५३६ भाग प्रमाण काल पर्यन्त हो पुष्य को भुक्ति होती है। इसके आगे आश्लेषा से उत्तराषाढ़ा पर्यन्त नक्षत्रों की भक्ति क्रम मे होती है। इनमें तीन जघन्य नक्षत्रों का भुक्तिकाल ( "०१३ )= 10 दिन, सात मध्यम नक्षत्रों का भुक्तिकाल ( 1 )="३ दिन और तीन उत्कृष्ट नक्षत्रों का भुक्तिकाल (0x3 ) - 312 दिन है । इनका कुल योग 11 +' +१३+= ११ दिन अर्थात् १८० दिन है । इस प्रकार दक्षिणायन राहु के, नकात्रों को भुक्ति का काल १८० दिन है।
चन्द्रमा एक अयन में १३६४ दिन नक्षत्रों का भोग करता है, अतः चन्द्रमा का एक वर्ष का भक्तिकाल ( १३४४४२)=२७६४ दिन पर्यन्त है। सूर्य का एक अयन का भुक्तिकाल १८३ दिन है, अत। दोनों अपनों के मिलाकर एक वर्ष का मुक्तिकाल ( १८३४२)=३६६ दिन हैं । इसी प्रकार राहु का एक अयन का भुक्तिकाल १८. दिन है. अता दोनों अपनों के मिला कर एक वर्ष का भुक्तिकाल (१८०४२) = ३६० दिन हैं। राह, रवि और शशि के एक अयन के भक्तिकालों का सङ्कलन :
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