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________________ ३६२ त्रिलोकसार पाथा:४०४ अथ साम्प्रतं मन्द्रादित्ययोनक्षत्रभुक्तिमाह-- इंदुरवीदो रिक्खा सत्तट्ठी पंच गगणखंदहिया । अहियादि रिक्खखंडा रिक्खे इंदुरविमस्थणमुहुचा ।। ४.४ ॥ इन्दुरवित: ऋक्षाणि सप्तषष्टिः पञ्च गगनखण्डाधिकानि । अधिकाहितऋमखण्टानि ऋो इन्दुरविअस्तमनमुहूर्ताः ॥ ४०४ ॥ इंबुरवी । इन्दुरविगगनसदेम्यः यथाक्रम १७६८ रवि १३. ऋक्षाणि सप्तहिगगनखण्डः ६७ पश्चगणनखण्ड ५ श्वाधिकानि १८३५ एकस्यां वेलायां गमनं प्रारम्प नमो नक्षत्राणि च एकस्मिन्मुहर्त स्वस्वगगमयसमासिकरणे पायो नक्षत्रात्सप्ततिखण्डानि पृष्ठभागे प्रपसरति । एसबपसरलं धृत्वा एतावधिकलपडा ६७ पसरणे यधेको मुहूर्तस्सवा एतावत् अभिनिवखण्डा ६३. पसरणे कियन्तो मुहूर्ताः स्पुरिति सम्पातविषिमा प्राधिकेन ६७ पभिजिवाविजघन्यमध्यमोत्कृष्ट नक्षत्रमण्डेषु प्रमिजितः ६३.० १.०५ म. २०१. २० ३०१५ हतेषु तत्तानक्षत्रे इन्योः परसन्ममुहूताः स्युः अभिजितो मु ६ मा ३५ ज १५ म ३०४५ जघन्मनक्षत्रे त्रिशमुहूर्तानामेकास्मिन दिने इमता १५ मुहूर्तान किमिति सम्पाय पश्चवामिरपतिले लग्धविन : म बिन १ =नम्मु = ४५ एतद्दिनं कृत्वा पापभिरपवसिते एवं । एकमेवादित्यस्य नक्षत्राणां भुमिकालो नातव्यः । भिजितः = वि ४, मु६ 1 जवि ६, सु २१ । म-वि १३, पु १२ । =वि.२०, मु ३ ॥ ४० ॥ अब चन्द्रमा और सूर्य की नक्षत्र भुक्ति को कहते हैं : गाथा:- चन्द्रमा और सूर्य के गगनखण्डों से नक्षत्र के गगनखण्ड कम से ६७ और ५ अधिक है। इन अधिक गगनखण्डों का अपने अपने नक्षत्रखण्डों में भाग देने पर नक्षत्र और चन्द्र तथा नक्षत्र और सूर्य के आसन्न मुहूतों का प्रमाण प्राप्त हो जाता है ॥ ४० ॥ . विशेषार्थ :-१ मुहूर्त के गमन की अपेक्षा चन्द्रमा के पगनखम्ड १७६८, सूर्य के १८३७ और नक्षत्र के १८३५ हैं । जो चन्द्रमा के गगनखण्डों से (१८३५-१७६८)-६७ और मूर्य के गगन खण्डों से ( १८३५-५८३.)=५ अधिक है। एक ही साथ चन्द्रमा और नक्षत्र ने गमन करना प्रारम्भ किया और एक ही मुहूर्त में दोनों ने अपने अपने गगनलग्दों को समाप्ट कर दिया । अर्थात् १ मुहूर्त में चन्द्र ने १७६८ गगनखण्डों का भ्रमण किया, जबकि नक्षत्र ने १८३५ का किया, प्रतः नक्षत्र से चन्द्रमा ६७ गगनखण्ह पीछे रहा । चन्द्रमा अभिजित् नक्षत्र के ऊपर है और अभिजित् नक्षत्र के ६३० गगनखण्ड हैं । जबकि ६७ गगनखाह छोड़ने में चन्द्रमा को १ मुहूर्त लगा, तब ६२० गगनखण्डों को छोड़ने में कितने मुहूर्त लगेंगे । इस प्रकार शाशिक करने पर =३४ मुहूर्त प्राप्त होते हैं। यही
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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