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________________ ३६० त्रिलोकसार पाथा : ४०२ गायार्थ :--यो चन्द्रमा के मिले हुए गगन खण्डों का प्रमाण एक लाख नव हजार आठ सौ (१०६८०० ) है। चन्द्र सूर्य और नक्षत्र एक मुहूर्त में अपने अपने जितने गगन खण्डों में भ्रमण करते हैं, उन जन गगन खण्डों का १०1८०० में भाग देने पर परिधि में भ्रमण का काल प्राप्त होता है ।। ४०१ ।। शेषाय :--६ जघन्य नक्षत्रों में प्रत्येक के १००५ गगन खण्ड हैं। मध्यम नक्षत्र १५ हैं, इनमें प्रत्येक के मर्गन खण्डों का प्रमाण २०१० है, तथा उत्कृष्ट नक्षत्र ६ हैं. इनमें प्रत्येक के गगन खण्डों का प्रमाण ३.१५ है। इनमें अपनी अपनी संख्या का गुणा करने पर निम्नलिखित प्रमाण प्राप्त होता है । यथा-१४०५४ ६-६०३० जघन्य नक्षत्रों के गबन खण्ड हए । २०१.४१५-३०१५० ये मध्यम गगन खण्ड है. तथा ३०१५४६-१८०९० ये उत्कृष्ट गगन खण्ड हैं । इनमें अभिजित् नक्षत्र के ६३० गगन सय मिझाने पर (६०३०+ ३०१५० + १८०९०+६३० -५४९०० हुए। ये एक चन्द्रमा सम्बन्धी है और परिधि में चन्द्रमा दो हैं, अतः इस प्रमाण को दुगुना करने पर गगन खण्डों का कुल प्रमाण ( ५४६७.४२) १०९८.० प्रास होता है। इन गगन खण्डों में अपने अपने एक मुहृतं गमन प्रमाण गगन बण्डों का भाग देने से परिधि भ्रमण का काल प्राप्त हो जाता है। वह कैसे आता है ? उसे कहते हैं :-जबकि चन्द्रमा को १.६८ गगन खण्डों के भ्रमण में एक महतं लगता है, तब १०९८.. गगन खण्डों के भ्रमण में कितना काल लगेगा ? इस प्रकार राशिक करने पर 9300 = ६२/ ६२७ मुहूर्त काल प्राप्त हुआ। इसी प्रकार सूर्य को १८३० गगन खुण्डों के भ्रमण में एक मुहूर्त लगता है, तब tot०. गगन खण्डों के भ्रमण में कितना काल लगेगा? इस प्रकार राशिक करने पर १९६६ =६० मुहूतं सूर्य का परिधि में भ्रमण करने का काल प्राप्त होता है। जबकि नक्षत्रों को १०३५ गगन खण्डों के भ्रमण में एक मुहसं लगता है, तब १६८०० गगन बण्डों के भ्रमरण में कितना काल लगेगा ? इस प्रकार १६६° = १५३५=५९३१४ मुहूर्त नक्षत्रों का परिधि में भ्रमण करने का काल है । इस प्रकार चन्द्र, सूर्य और नक्षत्रों का परिधि भ्रमण काल प्राप्त होता है। अथ ताः स्वकीयस्त्रकीयमुहूर्तगतयः का हत्यत्राह थट्ठी समरसयमिंदू छावहि पंचाहियकर्म । गच्छन्ति सूररिक्खा गभखंडाणिगिमुहत्तेण ।। ४०२ ।। अषष्टिः सप्तदशशतं इन्दुः षट्षष्टिः पवाधिककमारिण। गच्छन्ति सूर्यऋक्षाणि नमः खण्णानि एकमुहूर्तेन ।। ४०२ ।।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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