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________________ पाया । ३९८ ज्योतिर्लोकाधिकार ३५७ लवण समुद्र का व्यास २००००० योजन है। इसका छठवां भाग (२०००००) ३३३३३३ योजन होता है। इसमें द्वीप सम्बन्धी चारक्षेत्र का प्रमाण १८० योजन मिलाने पर ( ३३३३१३+ १८० ) = ३३४१३३ योजन हुआ, अत: सूर्य का बाताप अभ्यन्तर वीथी से प्रारम्भ कर दशा समुद्र के छठवें भाग पर्यन्त ३३५१३३ योजन अर्थात् १४२०५३३३३ मील दूर तक दक्षिण दिशा में फैलता है । इसी प्रकार अन्य वीधियों में लगा लेना चाहिये। सूर्य विम्ब से चित्रा पृथ्वी ५०० योजन नीचे है, और १००० योजन चित्रा पृथ्वी की जड़ है। कुल योग (१०००-८००) १८०० योजन हुआ, अतः सूर्य का आताप नीचे की ओर १८०० योजन ( ७२००००० मील ) तक फैलता है । सूर्य बिव से ऊपर १०० योजन पर्यन्त ज्योतिर्लोक है, अतः सूर्य का आताप ऊपर की ओर १०० योजन ( ४००००० मील) दूर तक फैलता है । अथेदानीं चन्द्रादित्यप्रहाणां नक्षत्रभुक्ति प्रतिपादयितुकामस्ताव देकैकनक्षत्रसम्बन्धिसी मागगनखण्डमाह : अभिजिस गगणखंडा वस्तुयतीसं च अवरमज्झवरे । छन्दार छक्केइनिविशतसहस्सा ।। ३९८ ॥ अभिजित गगनखण्डानि षट्तत्रिंशत् च अवरमध्यवराणि । षट्पद घटके एक द्वित्रिगुणपश्चयुतसहस्राणि ॥ ३६८ ॥ अभिजित् । प्रभिजितः गगमखण्डानि षट्ातत्रियात् ६३० जघन्यमघमोत्कृष्ट नक्षत्र यथाक्रम ६ पश्च १५ षट् ६ प्रमाणे यथासंख्प एकद्वित्रितिपचयुतसहस्र गगनखण्डानि ० १००५ म० २०१० ३० ३०१५ ।। ३६८ ॥ अब चन्द्रमा, सूर्य और ग्रह इनके नक्षत्र मुक्ति के प्रतिपादन की इच्छा रखने वाले प्राचार्य सर्व प्रथम एक एक नक्षत्र सम्बन्धी मर्यादा रूप गगन खण्डों का निरूपण करते हैं। :― गावार्थ :- अभिजित् नक्षत्र के छह सौ तीस गगन खण्ड हैं, तथा जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट नक्षत्रों की संख्या कम से छह, (१५) पन्द्रह और छह है, इनके गगन खण्ड भी क्रमशः एक हजार पाँच, दो हजार दश और तीन हजार पन्द्रह है ।। ३९८ ।। विशेषार्थ :- परिधि रूप आकाश के कुल १०९८०० गगन लण्ड हैं, इनमें एक चन्द्रमा सम्बन्धी अभिजित नक्षत्र के कुल ६२० गगन खण्ड हैं । अर्थात् अभिजित् नक्षत्र की सीमा रूप परिधि
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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