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ज्योतिर्लोकाधिकार
गाथा : ३९६
सूर्य की ६४ वीं बीधी द्वीप और वेदिका को सन्धि में है। इसके आगे दो योजन का अन्तराल है। इस अन्तराल के आयोजन क्षेत्र सूर्य के द्वारा रुद्ध है । अर्थात् अन्तराल के बाद सूर्य का एक मार्ग योजन का है। इसके आगे अवशेष रहे हैं में से भाग को आगे के दो योजन अन्तराल में दे देना चाहिये। इस प्रकार द्वीप और वैदिका की सन्धि में जो सूर्य है, उसके व्यास को प्राप्त जो ३३ योजन प्रमाण क्षेत्र है, उसमे लगाकर वेदिका का चार योजन प्रमाण क्ष ेत्र समाप्त हुआ ।
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योजन क्ष ेत्र में १ उदय स्थान है, तब बिम्ब रहित लवण समुद्र कितने उदय स्थान होंगे ? इस प्रकार वैराशिक करने पर अर्थात् लवण समुद्र में ११८ उदय स्थान प्राप्त हुए और योजन उदय अंश शेष रहे। जबकि १ उदय स्थान का योजन क्षेत्र है, तब उदय अंशों का कितना क्षेत्र प्राप्त होगा ? इस प्रकार रानिक करने पर योजन तंत्र प्राप्त हुआ। इस योजन क्षेत्र को वेदिका सम्बन्धी अन्तराल में ऊपर दिया हुआ का अवशिष्ट योजन क्ष ेत्र मिला देने पर + अर्थात् २ योजन प्रमाण अन्तराल सम्पूर्ण हो जाता है । इस अन्तराल से जागे अन्तिम अन्तराल पर्यन्त क्षेत्र में रविविम्ब सहित बस्तर प्रमाण रूप दिन गति शलाका ११८ हैं, जिनका विवरण सुगम है। वहीं उदय स्थान भी ११८ है, इससे मागे बाह्य वीथी में स्थित सूर्य बिम्ब के व्यास में एक उदय स्थान होता है। इस प्रकार लवण समुद्र में सब मिलाकर ११८+१=११९ उदय स्थान हैं। इस प्रकार दक्षिणायन में सूर्य के कुल ६२+२+११९-१०३ उदय स्थान होते हैं ।
लवण समुद्र में जबकि
के चार क्षेत्र ३३० योजन में
विशेष ज्ञातव्य :- पथ व्यास - वीथी में स्थित सूर्यबिम्ब के क्षेत्र प्रमाण का नाम पथ व्यास है, जिसका प्रमाण योजन है । अन्तर-चार क्षेत्र में एक वोथी से दूसरी वीथी के बीच के क्ष ेत्र का नाम अन्तर है, जिसका प्रमाण दो योजन है । १८०-४ ( यो० की वेदिका ) - १७६ योजन वैदिका रहित द्वीप सम्बन्धी चार क्षेत्र में सर्व प्रथम अभ्यन्तर पथव्यास है, इसके आगे २ योजन का प्रथम अन्तराल है । इसके लागे पुनः योजन प्रमाण पत्रव्यास, पुन अन्तराल इस प्रकार क्रम से बढ़ते हुए जम्बुद्वीप के ६३ वें पथव्यास के बाद ६३ वो अन्तराल प्राप्त होता है, और उसके आगे योजन क्षेत्र शेष बच जाता है। इसमें ४ योजन प्रमाण वाली वेदिका सम्बन्धी चार क्ष ेत्र में से योजन निकाल कर जोड़ देने से (३६+३ = योजन प्रमाग वाला ६४ वाँ पथव्यास प्राप्त हो जाता है । ६४ वीं वीथी द्वीप और वेदिका की संधि में है । ६४ वें पय व्यास के आगे ६४ व अन्तराल और इसके आगे ६५ वाँ पथ व्यास है । इसके प्रागे वेदिका सम्बन्धी चार क्षेत्र के प्रमाण में से वे योजन क्षत्र अवशिष्ट रह जाता है ।
लवण समुद्र सम्बन्धी पय व्यास ( सयं बिम्ब ) के प्रमाण से रहित चारक्ष ेत्र के ३३० योजन