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त्रिलोकसार
गाथा ३६६
दक्षिणायन में द्वीप समुद्र सम्बन्धी चारक्षेत्र और वेदिका के विभाग करके उदयप्रमाण का प्ररूपण करने के लिए त्रैराशिक को उत्पत्ति कहते हैं
३५.
गाया :- द्वीपसमुद्रसम्बन्धी चारक्षेत्र के प्रमाण में और वेदोके प्रमाण में दिनगति मान के प्रमाण का भाग देने पर सूर्य के उदय स्थानों का प्रमाण प्राप्त होता है । चद्रमा के द्वीप सम्बन्धी चारक्षेत्र के उदय स्थान ४ और लवण समुद्र के १० अर्थात् कुल १४ ( उदय स्थान ) हैं ।। ३९६ ॥
विशेषार्थ :- सूर्य के प्रथम वोधी में स्थित होने से दक्षिणायन का ओर अन्तिम वीथी में स्थित होने से उत्तरायण का प्रारम्भ होता है। यहाँ दक्षिणायन सूर्य के उदय स्थानों का प्रमाण दर्शाया जाता है । चारक्षेत्र के व्यास में तथा वीथियों में सूर्य के जितने जितने उदय स्थान है, उन्हें कहते हैं। जम्बुद्वीप में सूर्य के चारक्षेत्र का प्रमाण १५० योजन है। जम्बूद्वीप की वेदी का व्यास ४] योजन है, अतः १८०४ १७६ योजन जम्बूदीप के चार क्षेत्र का प्रमाण रहा । चार योजन विस्तार वाली वेदिका के ऊपर भी सूर्य का चारक्षेत्र है । लवण समुद्र के चारक्षेत्र का प्रमाण ३३० योजन है । सूर्य के प्रतिदिन का गमनक्षेत्र २१ योजन है। उपर्युक्त चारक्षेत्र के प्रमाणों में दिनगति के प्रमाण का भाग देने से उदयं स्थानों की प्राप्ति होती है जैसे - जबकि योजन दिगति में एक उदय स्थान प्राप्त होता है, तब वैदिका के प्रमाण से रहित जम्बूदीप के चारक्षेत्र में कितने उदय स्थान प्राप्त होंगे ? इस प्रकार त्रैराशिक करने पर ११७३६३ उदय स्थान प्राप्त हुए और नंदा शेष रहे। इनमें से प्रथम वीथी का प्रथम उदय स्थान उत्तरायण सम्बन्धी है, अतः ६३-१६२१ उदय स्थान हुए प्रथम वीथी से द्वीप के सम्बन्धी अन्तिम सूर्य से सूर्य के अन्तराल क्षेत्र पर्यन्त ६३ उदय स्थान समाप्त हो जाते है । अवशिष्ट उदय अंश हैं, अतः जबकि १ उदय स्थान का योजन क्षेत्र है, तब उदय अंशों का कितना क्षेत्र होगा ? इस प्रकार त्रैराशिक करने पर योजन क्षेत्र प्राप्त हुआ ये द्वीप सम्बन्धी उदय मंत्र सूयं बिम्ब द्वारा रोके हुए अगले क्षेत्र में देना चाहिये। जबकि योजन क्षेत्र में एक उदय स्थान प्राप्त होता है, तब वेदिका के चार योजनों में कितने उदय स्थान प्राप्त होंगे ? इस प्रकार राशिक करने पर ६४ =
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उदय श्रंश शेष बचे । पूर्वोक्त न्यायानुसार जयक उदय अंशों का कितना क्षेत्र होगा ? इस प्रकार LOOXUY = योजन क्षेत्र में से योजन क्षेत्र लेकर उपयुक्त दे 1XT9 योजन क्षेत्र में मिला देने पर (१+ + ३३ ) ६ योजन क्षेत्र हुआ । अर्थात् सूपं विम्ब के द्वारा रुद्ध क्षेत्र का प्रमाण प्राप्त हुआ। इस प्रकार अभ्यन्तर वीथों की ६४ वीं वीथी में स्थित सूर्य बिम्ब का व्यास
अर्थात् एक उदय स्थान प्राप्त हुआ और १ उपय स्थान का योजन क्षेत्र है, तब योजन क्षेत्र प्राप्त हुआ । इस
योजन क्षेत्र तो द्वीप सम्बन्धी चारक्षेत्र में से अवशेष बचा था और योजन क्षेत्र वेदिका सम्बन्धी चार त्र के अवशेष अंश में से ग्रहण करयोजन सिद्ध हुआ। इससे यह ज्ञात होता है कि