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त्रिलोकसार
गाथा। ३९५ गाथार्ष:-(माधव ) ६, ( चन्द्र ) १ अर्यात् १६ मे उद्धृत ( नवकला ) ६ भाग अर्थात् । योजन हरिक्षेत्र चाप के शेषांक हैं । ( नयपद) से प्रमाण २ का गुणा अर्थात् १५ योजन निषघाचल के शेषांक हैं तथा कुछ कम चौदह की कृति ( १९६ ) से अधिक बोस हजार योजन अर्थात् कुछ कम २०१९६ योजन निषघाचल को पाश्वभुजा का प्रमाण है ।। ३६४ ॥
विशेषार्थ:-माधव अर्थात नारायण हे होते हैं और दृश्यमान चन्द्र एक है, अता १६ हुए। इनसे प्राप्त हुई नवककला अर्थात एक योजन के १९ भागों में से ६ भाग, यह योजन हरि क्षेत्र के चाप का शेषांक है ( हरिक्षेत्र के चाप का कुल प्रमाण ८३३७७, योजन हुआ) इन 5 में ( नयपद) मथ ९ हैं अत: के स्थान को प्रमाण अर्थात २(प्रमाण दो प्रकार का होता है । ) से गुणा करने पर (२४१-१६ योजन निषधाचल के चाप का शेषांक है । ( निषधाचल के चाप का कुल प्रमाण १२३७६८६ योजन हुआ ) तथा निषधाचल की पाश्वं भुजा का प्रमाण कुछ कम चौदह की कृति ( १६६ ) से सहित बीस हजार अर्थात् कुछ कम २०१९६ योजन है।
अथायनविभागमकृत्वा सामान्येन चारक्षेत्रे उदयप्रमाणप्रतिपादनाथमिदमाह
दिणगदिमाण उदयो ते णिसद्दे णीलगे य तेसङ्की । हरिरम्मगेसु दो दो सूरे णवदससयं लवणे ॥ ३९५ ॥ दिनगतिमान उदयः ते निषधे नोलके च त्रिषष्टिः ।
हरिरम्यवयोः द्वौ दो सूर्ये नवदशशतं लवणे ॥ ३६५ ।। विणादि । विमतिक्षेत्रमिवं १४१ एतावति क्षेत्र योग सूपस्योक्यो भवेव तका एसाबप्ति ५१० क्षेत्र कियरत उदया ति सम्पास्य मत समोरयाः १८३ पर्यन्ते शेषरविधिम्बावाटम्ये मो ६ एक उत्या मिलिस्वा चारक्षेत्र धतुरवारस्युत्तरशतमुदया। कुतः, प्रतियोध्येकैकोवयसम्भवात । ते विनगरपुल्या निषधे १३ नीले च ६३ प्रत्येक विषष्टिः हरिव २ रम्पकवर्षयोः २ो ठौ । सारणसमुद्रे एकान्नविशं शतं ११६ ॥३६५॥
___ अयन में विभाग न करते हुए सामान्य से चारक्षेत्र में उदम प्रमाण का प्रतिसदन करने के लिए यह गाया सूत्र कहते हैं :
नापा:-सूर्य के दिनगतिमान अर्थात उदय स्थान निषध और नील पर्वत पर ६३ हैं. हरि और रम्या क्षेत्रों में दो दो हैं, तथा लवण समुद्र में ११६ हैं ॥ ३५॥