SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 391
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाया। ३६ ज्योतिर्लोकाधिकार विशेषार्थ :--सूर्य का सम्पूर्ण गमन क्षेत्र ५१. योजन । २०४०.०० मील) है। इसमें सूर्य के प्रतिदिन के गमन क्षेत्र का प्रमाण २१६ या योजन ( १९९४ मोल ) है, अतः ११ योजन गतिमान क्षेत्र में यदि सूर्य का एक उदय है, तो ५१० योजन क्षेत्र में कितने उदय होंगे । इस प्रकार राशिक करने पर ५ '-१८३ उदय स्थान प्राप्त हए तथा चारक्षेत्र के अन्त सक शेष क्षेत्र में सूर्य विम्ब के योजन द्वारा क्षेत्र व उE: दो में मिलाकर सम्पूर्ण चारक्षेत्र में कुल १८४ उदय स्थान प्राप्त हुए । एक चारक्षेत्र में सूर्य की वीथियां भी १८४ ही हैं, यता यह सिद्ध हुआ फि एक वीथो में एक ही उदय स्थान होता है अतः निषधपर्वत पर ६३ उदय स्थान है । नील पर्वत पर भी ६३ है । हरिक्षेत्र और रम्यक् क्षेत्रों में दो दा हैं। तथा लपणसमुद्र में ११९ उदय स्थान है। समस चारक्षेत्र (५१. बोजन ) में सूर्य का उदय १४ बार होता है । भरतक्षेत्र की अपेक्षा निषधाचल पर ६३, हरिव क्षेत्र में दो और लवप समुद्र में ११६ उदय स्थान होते हैं। ( ६३+२+ ११९=१८४ उदय स्थान ) अभ्यन्तर (प्रथम ) वीथो मे ६३ वी वीथी तक स्थित रहने वाला सूयं निषधाचल के ऊपर उदय होता है। जो भरतक्षेत्र के निवासियों द्वारा दृश्यमान है। ६४ वी और ६५ वी वीथी में रहने वाला सूर्य हरिक्षेत्र में उदय होता है, तथा ६६ वीं बोधी से अन्तिम वीथी पर्यन्त रहने वाला सयं लवण समुद्र के ऊपर उदित होता है। इसी प्रकार ऐरावत क्षेत्र की अपेक्षा ६३ उदय स्थान नील पवंत पर, दो (२) रम्यक क्षेत्र में और ११९ उदय स्थान लवण समुद्र पर हैं। अघ दक्षिणायने चारक्षेत्रे द्वीपवेदिकोदधिविभागेनोदयप्रमाणप्ररूपमा राशि कोत्पत्तिमाह दोउवहिचारखिसे वेदीए दिणगदी हिदे उदया । दीवे चउ चंदस्त य लवणसमुहम्हि दम उदया ।।३९६ ।। द्वोपोदविचारक्षेत्र वेद्यां दिनगतिहिते उदयाः। वीपे चतुः चन्द्रस्य च लवण समुद्रं देश उदयाः ।। ३६६ ।। पीउहि । एतापति विनातिक्षेत्रे यक शायो १ लम्यते तदा एतापति धेविका ४ रहिसद्वीपचारक्षेत्रे १७६ कियन्त उदया इति सम्पास्य भक्त लन्धोदपाः ६३ एषु प्रथमपोवयस्य प्राक्तनायमसम्बन्धिस्वेनापहरणात बाधिरेवोक्ष्याः ६२ शेष - पत्र विदिन गतिशलाका, होपचरमान्तरपन्ते समासः भवशिष्टा उसपोशा: पविशतिः सप्सतिशतभागा में एकस्योदयस्य
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy