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पापा : ३६४
ज्योतिलोकाधिकार
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भाषा :-निषघाचल के चाप (धनुष ) का प्रमाण १२३७६८६६ योजन है. इसमें से हरिक्षेत्र के चाप ( ८३३०७.१ योजन ) को घटा कर आधा करने पर जो अवशेष रहता है वह निषध पर्वत की पाश्वं भुजा का प्रमाण होता है ।। ३९३ ॥
विशेषार्ष:-दक्षिण तट से उत्तर तट पर्यन्त चाप का जो प्रमाण है. उसे पाश्वभुजा कहते हैं । निषघाचल के चाप का प्रमाण-हरिवर्ष क्षेत्र के चाप का प्रमाण+२= निषघाचल की पाश्वं भुजा का प्रमाण होता है। निषधाचल के चाप का प्रमाण १२६७६८६ योजन और हरिक्षेत्र के पाप का प्रमाण ८३३७७. योजन है। १२३४६८६-८३३७७.९ =४०३६१.८ योजन अवशेष रहे। इनमें से एक अङ्क घटा कर शेष को आषा करने पर ( ४.३६१-१)=४०३९०७ रहा। इसे आधा करने पर ४०३९०+२=२०१६५ हुए। जो १ घटा लिया था उसका बाधा और का आधा इन दोनों को जोसकर दो से अपवर्तन कर देने पर (३+१४२ = ३६ या )= प्राप्त हुआ। इसे किश्चित् न्यून न मान कर १ योजन ही मान कर क्षेत्र और पर्वत के चाप को घटा कर अवशेष के अधंभाग २०१९५ में जोड़ देने से (२०१६५+१)=२.१९६ योजन निषधपर्वत की पार्श्व भुजा होती है।
थब हरिक्षेत्र और निषघाचल के धनुष ( चाप ) के सिद्ध हए अङ्कों को कहते हैं :-हरिव क्षेत्र के धनुष का प्रमाण ८३३७७ योजन एवं निषधपर्वत के चाप का प्रमाण १२३७६८ योजन प्रमाण है।
अथोक्तयोर्धनुषोः गेषाङ्क पाश्वभुजाङ्क चोच्चारयति
माहवचंदुद्धरिया णवयकला जयपदप्पमाणगुणा | पास जो चोद्दसकदि वीससहस्सं च देसूणा ।। ३९४ ॥ माधवचन्द्रोद्ध ता नवकाला नमपदप्रमाणगुणाः ।
पार्श्वभुजः चतुदंशकृतिः विशसहस्र च देशोनानि ।। ३६४ ॥ माह | माधवप्रेणो १६ पता मवाला : एताः हरिक्षेत्रस्य चापशेषाः एता एव । मयत्यानप्रमाण २ गुणिताः ३६ निषषमापस्यांशाः निषषस्य पार्षभुनः पुनः चतुर्दशकतिविशति सहस्रयोजनानि २०१६६ देशोनानि ॥ ३९ ॥
उपयुक्त दोनों धनुषों के शेषांक और पाश्र्वभुजा के अंक कहते हैं