SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 387
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा ३६२ ज्योतिर्लोकाधिकार होगा ? इस प्रकार गशिक करने पर コロ १००० योजन प्राप्त होता है। अर्थात् ३१ और निषधाचल की ६३ शलाकाओं का कितना क्षेत्र हरिवर्ष क्षेत्र का बारण और निषधाचल का बारण वेद से हरिवर्ष और विषध के बीच इतना इतना अन्तराल है। यहाँ चक्षु अध्वान क्षेत्र लाने के लिये कहते हैं :- जम्बूद्वीप का चार क्षेत्र १८० योजन प्रमाण है, इसको १६ से समानछेद करने पर { *६° × है !योजन होता है। इसे पूर्व कथित हरिवर्ष एवं निषधाचल के बाण के प्रमाण में से घटा देने पर ३०००० २०=०० हरि क्षेत्र का बाण तथा (30000निषधाचल के बाण का प्रमप्राप्त हुआ। यह वृत्तविष्कम्भ अर्थात् गोलाई का क्षेत्र है। इसकी चौड़ाई का प्रमाण कहते हैं : यथा जम्बूद्वीप के वृत्तविष्कम्भ १००००० योजन में मे इस द्वीप सम्बन्धी चारक्षेत्र के दोनों पाव भागों का प्रमाण घटा देने पर [ १०००००(१) १९९४विस्तार प्राप्त हो जाता है। इस अभ्यन्तर so = वीपी के प्रमाण को १६ से समच्छेद करने पर 10 योजन हृपा । כ ३४३ अब मह हरिवर्ष क्षेत्र के चाप का प्रमाण लाने के लिए कहते हैं : १८९२५६ "सुहीणं विवखंभं चउगुरिदिमुना हदे दु जीवकदी बाणकदि वहिगुणिदे, तत्थ जुदेप्रणुरुदी होदि" इस ७६० गायानुसार हरिवर्ष क्षेत्र के बाण के प्रमाण ( ०३८० ) को अभ्यन्त य बोधी के प्राण में में घटाने पर जो अवशेष रहे (१०) उसको चौगुणे द्वारा के प्रमाण ** ) से गुणित करने पर जीवा की कृति होती है । यथा :- १८१०. ३०००८००-१५०० ४१८० अवशेष | चौगुरखा चारा का प्रमाण (३०१५८०२३२० है। १९८४७८० X १२२०३२०११४५५१०० योजन जोवा की कृति अर्थात् जीवा के वर्ग का प्रमाण है । इस जीवा की कृति के वर्गमूल का जो प्रमाण है-वही जीवा का प्रमाण है। अर्थात् २०५ 30 2 x पह १३५४८१७ ७३४१४ योजन की जीवा है । धनुष ( चाप ) की कृति : हरिवर्ष क्षेत्र के बाण का प्रमाण १०६५८ योजन है। इसकी कृति (३०० x ६८० १९५४ योजन हुई । इसको छह में गुणित कर जीवा की कृति में जोड़ने से धनुष की कृति होती है यथा-- १९३४००X८४०० + १२४५६७०३८५६०० – २५०९६६५८४००० घोजन धनुष की कृति का प्रमाण । इसका वर्गमूल योजन हुआ। इसमें अपने ही भागहार (१६) का भाग देने पर ८३३७७ योजन हरि क्षेत्र के चापका प्रमाण होता है । = निषेध पर्वत के चाप का प्रमाण :अभ्यन्तर वीथी का प्रमाण १८९३० २५८० निषद्याचल के बाल का प्रमाण=
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy