________________
३४२ त्रिलोकसार
पाषा: ३६२ ३१२६१३४१४०० छहिगुणिये १३५५५५८४०० तत्प जुदे घशुकदो होनि' ५५३०१११११४००० तन्मूल २३ एतस्मिन् स्वहारेण १६ भक्त १२३७६८ शेषे ई निषगिरिचापं स्यात् ॥ ३९२ ॥
प्रयोजन भूत चाप ( धनुष ) का प्रमाण प्राप्त करने के लिये, उसके बाण को प्राप्त करने का विधान कहते हैं :
गाथार्थ :- जम्बूद्वीप के चार क्षेत्र से रहित जो हरिवर्ष पर्वत के बाण और निपधपर्वत के बाण है, वे यहाँ चक्षु स्पर्श का अध्वान क्षेत्र लाने में वाण होते हैं। इनका जो वृत्त विस्तार है, वह प्रथम वीथी का विस्तार होता है ॥ ३९२ ।।
विशेषार्थ :- धनुषाकार क्षेत्र में जैसे धनुष की पोठ होती है, वैसा जो होता है, उसे धनुष या चाप कहते हैं। अनुष को चिला अर्थात डोरी का नाम जीवा है। धनुष के मध्य से जीवा के मध्य का भाग बाण कहलाता है। यहाँ जम्बूद्रीप की वेदी तथा हरियर्षक्षेत्र और निषधाचल के बीच का क्षेत्र धनुषाकार है, अत: हरिक्षेत्र व निषध पर्वत से लेकर जम्बूद्वीप की वेदी पर्यन्त के अन्तराल क्षेत्र को बारण कहते हैं, उस बाण का प्रमाण लाते हैं :
१ भरतक्षेत्र को पालामा १ । ५ हरिक्षेत्र की शलाका १६ | रम्यकत्र की शलाका १६ २ हिमवान्पर्वत की , २ १. निषधाचल को ३२ |.. रुक्मो प. , , ८ ३ हैमवतक्षेत्र " ॥ ४ ॥ ७ विदेहक्षेत्र ॥ . ६४ | ११ण्यवत क्षे... ४ ४ महाहिमवन प... E | ५ नौलपर्वत - " ३२ | १२ शिखरी प० , २
| १३ ऐरावत " !
इस प्रकार फुल शलाफाओं का योग १६० है। इसमें भरतक्षेत्र से हरिवर्ष क्षेत्र पर्यन्त की पालामाओं का प्रमाण ३१ है इन्ही ३१ शलाकाओं का प्रमाण प्राप्त करने के लिये "अन्तषणं गुणगुणिय, आदि-विहीणं रूऊणुत्तर भजिय" इस सूत्रानुसार यहां (अन्तधरणं ) अन्तघन रिक्षेत्र की सोछह शलाकाएं हैं। तथा प्रत्येक शलाकाएं भरतक्षेत्र से आगे दूनी दूनी होती गई हैं, अतः गुणकार दो है, इसका गुणा करने से { १६४२)= ३२ हुए। इसमें से आदिधन ( भरतक्षेत्र की १ शलाका ) घटा देने पर ( ३२-१ =३१ अवशेष रहे। इन्हें ( रूऊणुत्तर भजिय ) एक कम गुणकार से भाजित करने पर ३१: (२-1)-३१ वालाकाएँ ही प्राप्त हुई । इसी प्रकार निषषाचल की शलाकाएं ६३ होंगी। जम्बूद्वीप का विस्तार १ लाख योजन का एवं इसकी कुल शलाकाएं १९० हैं, अतः जबकि १६० शलाकाओं का क्षेत्र १००००० योजन है, तब हरिवर्ष क्षेत्र की १ गाया ७६.।