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त्रिलोकसार
पाषा: ३८७ बावीस । द्वाविसिषोडशत्रीणि ३१६२२ गिरिपरिधिः एकोननवति पाशवेकशिवम्भन्तरपरिमिः ३१५०८६ दिखसप्तषपकनिशत मध्यपरिषिः ३१६७०२ चतुर्दशत्र्यशीत्येकत्रिंशद्वाह्यपरिधि: ३१८३१४ ॥ ३८५ ॥
छावाल । षट्चत्वारिंशच्छम्पसप्तविपञ्चाशवलषाभाषपरिधिः ५२७०४६ इति भवन्ति मेहामृतीनां पञ्चाना परिषयः कमेगाकुक्रमेणव ॥ ३८६ ।।
अब दो गाथाओं में पांचों परिधियों के सिद्ध हुए अङ्क, कहते हैं :
गावार्थ:-इकत्तीस हजार छ सौ बाईस; तीन लाख पन्द्रह हजार नवासी; तीन लाख सोलह हजार सात सौ दो; तीन लाख अठारह हजार तीन सौ चौदह और पांच लाख सत्ताईस हजार अचालीस मेरुगिरि की परिधि को आदि करके क्रम से पांचों परिधियों के सिद्ध हुए अड़ों का प्रमाण है ॥ ३०५, ३८६ ।।
विशेषार्थ :- मेरुगिरि की परिधि का प्राप्त हा प्रमाण ३१६२२ पोजन है। अम्यन्तर वीथो की परिधि का प्रमाण ३१५०८९ योजन है। मध्यम बौधी को परिषि का प्रमाण ३१६७०२ योजन है। बाह्म वीथो की परिधि का प्रमाण ३१८३१४ योजन है और जलषष्ठ भाग की परिधि का प्रमाण ५२७०४६ योजन है। अथ विसदृशान् परिधीन् कथं समानकालेन समापति इत्यत्राह
णीयंता सिन्धगदी पविसंता रविससी दु मंदगदी। विसमाणि परिरयाणि दु साहति समाणकालेण ।। ३८७ ।। निर्यान्तो षीघ्रगती प्रविशन्तो रविश शिनौ तु मन्दगती।
विषमान परिधींस्तु माघमत: समानकालेन ॥ ३८७ ।। पीयंता । नियन्तो शीघ्रगती भूत्वा प्रविशन्तो रविशशिमो मन्दगती भूत्वा विषमान परिषीस्तु सापयतः समापयतः समानकालेन ॥ ३८७ ॥
विसदृश प्रमाणवाली परिधियों को सूर्य समानकाल में कैसे समाप्त करता है ? इसे कहते हैं :
गाथार्य :-सर्य और चन्द्र निकलते ममय अर्थात् प्रथमादि वीथी से द्वितीयादि वीथियों में जाते समय शीघ्रगति से गमन करते हैं. किन्तु बाह्यादि वीथियों से ज्यों ज्यों पीछे की वीथियों