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________________ ३२९ गाषा: ३०० ज्योतिलोंकाधिकार सूर्य की अवस्थिति का स्वरूप और दिन रात्रि के हानि वय को कहते हैं : गाचार्य :-कर्क राशि स्थित सूर्य अभ्यन्तर परिधि में और मकर राशि स्थित सूर्य बाह्य परिधि में भ्रमण करता है। भूमि में से मुख घटाकर जो शेष बचे उसमें वीथियों के अन्दर (१८४-१=१८३) का भाग देने पर हानि चय प्राप्त होता है ॥ ३८ ॥ विशेषाचं :-कर्कट (कर्क राशि पर स्थित सूर्य अभ्यन्तर परिधि में भ्रमण करता है और मकर राशि पर स्थित सूर्य बाह्य परिधि में भ्रमण करता है । उस राशि की समाप्ति पर्यन्त दिन एवं रात्रि का प्रमाण उतना ( १८, १२ ) ही रहता है, या घटता है ? ऐसी थाङ्का होने पर प्रतिदिन होने वाले हानि चय को कहते हैं :- यहाँ १८ मुहूर्त तो भूमि है, और १२ मुहूर्त मुख है । भूमि में से मुख घटा देने पर (१८-१२)=६ मुहूर्त अवशेष रहते हैं। सूर्य की १८४ वीथियाँ हैं, किन्तु अन्तराल १८३ में ही पड़ता है । जबकि १८३ गलियों में ६ मुहूर्त का अन्तर पड़ता है, तब एक गली में कितना अन्तर गग? इस प्रकार राशिककर हत प्राप्त हुआ। इसे ३ से अपवर्तित करने पर प्रतिदिन के हानि चय का प्रमाण में मूहूर्त ( १३५ मिनिट) होता है। जिस दिन सूर्य अम्यन्तर वीथो में भ्रमण करता है, उस दिन १८ मुहूर्त का दिन होता है, किन्तु जिस दिन दूसरी वीथी में भ्रमण करता है, उस दिन ३, मुहूर्त घट जाता है। अर्थात् -3,-१७ मुहूर्त का दिन होता है। जब तीसरी वीथो में पहुँचता है, तब १७४१ या १६' - १४ अर्थात् १७१ मुहूर्त का दिन होता है। इसी प्रकार प्रत्येक वीधी में घटते घटते १७१५, १७१३, १७ ....."मुहूर्त का दिन होते होसे जिस दिन अन्तिम वीथी में पहुँचता है, उस दिन १२ मुहूर्त का दिन होता है। इसी प्रकार अम्यन्तर वीथी की ओर बढ़ते हुए प्रत्येक वीथी में में मूहूतं बढ़ते हैं। तव दिनमान १२१ १२६, १२६५, १२ इत्यादि कम से बढ़ते हुए अम्यन्त बीथो में १८ मुहून का हो जाता है । यथा : ART... PPR Saritaerta DURATI . AMHeal ircal C ४
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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