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________________ ३२८ त्रिलोकसाग गाथा । ३७९ अथैवमुक्तपरिधो परिभ्रमतः सूर्यस्य दिनराबिहेतुत्वं तयोः प्रमाणं च मार्गाश्रयेणाह सूरादो दिणरसी अट्ठारस बारसा मुहचाणं । अन्भनरम्हि एदं विवरीयं चाहिरम्हि हवे ।। ३७९ ॥ सूर्यात् दिनरात्री अष्टादश द्वादश मुहतानाम । मभ्यन्तरे एतविपरीतं बाह्य भवेत् ।। ३७१ ।। सूरावो । सूर्यात् मुहूतानामहावा विशसंख्ये ते यथासंख्य दिनरात्री स्याता । वेति बेद अस्पतरपरिषो । एलवेव विपरीतं माहापरियो भवेत् ॥३६॥ __उक्त परिधि में भ्रमण करते हुये सूर्य के दिन रात्रि का कारण एवं उनका प्रमाण, मार्ग के माश्रय से कहते हैं : गाचार्य :- अभ्यन्तर परिधि में भ्रमण करते हुए सूर्य से दिन अठारह मुहूर्व का और रात्रि धारह महतं की होती है, तथा बाह्य ( अन्तिम ) परिधि में भ्रमण करते हुये सूर्य से इससे विपरीत अर्थात् १० मुहूर्त की रात्रि और १२ मुहूर्त का दिन होता है ।। ३७६ ॥ विशेषार्ष:-जम्बूद्वीप की बेवी के पास १८० योजन की अभ्यन्तर (प्रथम ) वीथों में जब सयं भ्रमण करता है, तब दिन १- मुहूर्त ( १४ घ. २४ मिनिट) का और रात्रि १२ मुहूतं ( 6 घंटे ३६ मि.) की होती है। किन्तु जब वही सूर्य लवरण समुद्र की वाह्य ( अन्तिम ) परिधि में भ्रमण करता है, तब दिन १२ मुहूर्त का और रात्रि १८ मुहूर्त की होती है । अथ सूर्यस्यावस्थितिस्वरूपं दिन राश्योहानि नय चाह कक्कडमयरे सबभतरबाहिरपहटियो होदि । महभूमीण विसेसे वीधीर्णतरहिदे य चयं ।। ३८० ॥ कटमकर सभ्यन्तर बायपथस्थियो भवति । मुखभूम्योः विशेषे वीथीनामन्धरहिते च चयः ॥ ३८: ।। काकड । झटके मकरे च यथासंख्यं सर्वाभ्यन्तरपपस्थितो बाह्यपस्थितश्च भवति सर्पः । प्राशिसमाप्तिपर्यन्त कि सावत्येव १८ । १२ fagalस्थाशस्य प्रतिदिन हानिचयोस्तीत्याह । मुख १२ भूम्यो १८ विशेषे ६ ध्यगीतिगत १५३ वीभ्यन्तराला दिनरूपाणां बमुहा यदि एक बीयन्तरस्य कियामहा इति सम्पातेमागतेन पीथीनामंतरेण १८३ हो भागाभावात त्रिभिरपतिते पर प्रतिदिन हानियो भवति ॥ ३८० ।।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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