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गाथा । ३७
एतस्वकीय विम्य धारक्षेनं 101
ज्योतिर्लोकाधिकार
३२३ युक्त' चेत् । प्रतिदिवसं गमनक्षेत्रप्रमाणं स्मात । एवमेव चनास्य पथव्यासपिण्डं ११ वीश्यन्तराल ३५३१ विवसति सारसम्यं ॥ ३७७ ॥
वीथियों के अन्तराल से प्रतिदिन की गति विशेष को कहते हैं :
गत्यार्थ :-पय व्यास पिंड मे होन चार क्षेत्र के प्रमाण को १ कम पथ (बोषियों ) से भाजित करने पर वीथियों का अन्तर प्राप्त हो जाता है, तथा इसी अन्तर में सयं विम्ब का प्रमाण जोड देने से सर्य के प्रति दिन के गमन क्षेत्र का प्रमाण प्राप्त हो जाता है ॥ ३७७॥
___ विशेषा:-पथ ध्यास पिंड का अर्थ "निम्ब के प्रमाण से गुरिणत वीथियों का प्रमाण है" चार क्षेत्र का प्रमाण ५१०१६ योजन है। इसमें सयं गमन की १८४ गलियां हैं. प्रत्येक गली का प्रमाण
योजन ( ३१४७ मोल ) है, इसीको पथ ध्यास कहते हैं ।
___१४x योजन पथव्यास पिंड है। आदित्य बिम्ध के प्रमाण (1) सहित ५१० योजन ( ५१०४) का समानछेद करने पर ६० योजन होते हैं। यह चारक्षेत्र का प्रमाण है। इसमें से पथ ब्यास पिक (१३) घटा कर जो लब्ध प्राप्त हो उसमें १८३ वीयो अन्तरालों का (क्योंकि १८४ गलियों के अन्तर १८३ हो होंगे) भाग देने पर पक गली से दूसरी गली का अन्तर प्राप्त हो जाता है। जमे :-{ ( ८ - १९३): ( १८४-१) }=२ योजन ( ८००० मील ) एक गली से दूमरी गली का अन्तर प्राप्त होता है।
___ अथवा:--११xf=" या १४४ प्रमाण हुआ, अत :--५१० - १४-३६६ योजन शेष बचे । इसमें १८३ का भाग देने से ३६६ = ( १८४-१)=२ योजन प्रत्येक गली का अन्तराल प्राप्त हो जाता है। इस २ योजन अन्तर में सूर्य बिम्ब का प्रमाण (F) मिला देने से अर्थात् २४६ योजन ( १९९४७६३ मील) सर्य के प्रतिदिन गमन क्षेत्र का प्रमाण प्राप्त हो जाता है ।
चन्द्र की गलियों का अन्तर एवं प्रति दिन का गति प्रमाण :
चार क्षेत्र ५१०४- १५-(11x =1 )= 3018:/१५-१)= ३५. यो. चन्द्रमा की एक गली से दूसरी गली का अन्तर है। इसमें चन्द्र बिम्ब का प्रमाण मिलाने से ३५३ या
११५+५=१५७७ या ३६०० योजन चन्द्रमा के प्रतिदिन गमन क्षेत्र का प्रमागा प्राप्त हो जाता है।
एवमानीतदिवसगतिमाश्रित्यमेरोरारभ्य प्रतिमार्गमन्तरं तनपरिधि चाह