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________________ ३२२ त्रिलोकमार गाथा : ३७६-३७७ पडिदिनसमेकीथिं चंदाइच्चा चरंनि हु कमेण । चंदम्स य पण्णरसा इणरस चउसीदिसय वीथी ।। ३७६ ।। प्रतिदिवसं एक वीथि चन्द्रादित्याः चरति हि क्रमेण । चन्द्रस्य च पञ्चदश इनस्य चतुरशीतितं वीथ्यः ।। ३७६ ।। पहिदिवस । दी द्वौ मिलिया प्रतिक्षिप्तमेकवीमों चनाविल्याश्चरन्ति खलु क्रमेण बारस्य पक्यावीश्यः इनस्य चतुरशीतिशतवीभ्यः स्युः ॥ ३७६ ॥ चन्द मयं की वीथी ( गनी ) का प्रमाग कहते हैं :-- पाचार्ग :-चन्द्रमा की पन्द्रह वीथियां और स्यं को १८४ वीथियां है । चन्द्र और सूर्य क्रम से प्रति दिन एक एक वीथी में ही सवार करते हैं ।। ३७६ ।। विशेषार्थ :-५१०१५ योजन ( २०४३१४७१६ मील ) प्रमाण वाले चार क्षेत्र में चन्द्रमा की १५ गलियों मये की १८४ गलियां हैं। इनमें से कमश: प्रतिदिन दोनों स्यं मिलकर एक एक वीथी में सञ्चार करते हैं। लवण समुद्र के चार सर्यो के दो चार क्षेत्र हैं। अत: दो सर्य एक ओर और दो सूर्य दूसरी और प्रामने सामने रह कर ही संचार करते हैं । इसी प्रकार अन्यत्र भी जानना चाहिए। अथ वीथीनामन्तरेण दिवस गति कथयति-- पथवासण्डिहीणे चारग्वेचे गिरेयपथभजिदे । वीथीणं विच्चालं सगविम्ब जुदो दु दिवमगदी ।। ३७७ ॥ पथव्यासपिण्डहीना चारक्षेत्र निरेकपथभक्त । बीथीनां विचाल स्वबिम्बयुतं तृ दिवसगतिः ।। ३७७ ।। पय । पयवासेन F गुपिता पोय: १८४ पषष्यासपिण्डः ६३२ समानछेवोकृते दशोत्तरपचासे 82° पावित्यबिम्ब ६ मिलिसे सति चारक्षेत्र' स्यात् । अहिमन् पपण्यासपिण्डे २ सपनीते सति एवं २२१२। प्रत्रयभागहार ६१ निरेकपथेन १८३ गुणायित्वा १११६३ पनेम भागहारेण पपनातव्यासपिण् ॥ भक्त सति २ पीथीनां विशालं अन्तराल स्यात् । १ चारक्षेत्र स्मिन् (प.)।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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