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________________ पापा | ३७५ ज्योतिर्लोकाधिकार ३२९ गावार्थ:- दो चन्द्रों और दो सूर्यो के प्रति एक, एक ही चार क्षेत्र होता है। ये चाय क्षेत्र सूर्य बिम्ब के ( विस्तार ) प्रमाण से अधिक ५१० योजन ( ५१०४६ यो० ) प्रमाण वाले होते हैं ।। ३७४ ।। विशेषार्थ :- चन्द्र सूर्य के गमन करने की क्षेत्रनली को चार क्षेत्र कहते हैं। दो चन्द्र बोर दो सूर्यो के प्रति एक एक चार क्षेत्र होते हैं। जम्बूद्वीप के दो सूर्यो का एक चार क्षेत्र है । लवण समुद्र के चार सूर्यो के दो चार क्षेत्र, घातकी खण्ड द्वीप के १२ सूर्यो के ६ चारक्षेत्र, कालोदक समुद्र के ४२ सूर्यो के २१ चार क्षेत्र और पुष्करार्धं द्वीप के ७२ सूर्यों के ३६ चार क्षेत्र हैं । अथ तयोश्चारक्षेत्र विभागनियममाह रबिंदू दौवे चरंति सीदिं सदं च व्यवसेमं । लवणे चरंति सेसा सगसमखेते व य चरंति ॥ ३७५ || जम्बूरवीन्दवः द्वीपे चरन्ति अशीति शतं च अवशेषम् । लवणे चरन्तिशेषाः स्वकस्वकक्षेत्रे एव च चरन्ति ।। ३७५ । अंबू । जम्बूद्धोपस्थरवोग्ययः प्रशीतिशतयोजनानि १८० द्वीपे चरन्ति । मवशिष्टयोजना मि २३०६६ लवणसमुचरन्ति । शेषाः पुष्करार्धपर्यन्तथाविश्या स्वकीयस्वकीयक्षेत्रे एव चरन्ति । ४१ उन चार क्षेत्रों के विभाग का नियम कहते हैं : गाथायें :---जम्बूद्वीप सम्बन्धी चन्द्र पोर सूर्य, जम्बूद्वीप में तो १८० योजन हो विचरते हैं। शेष ( ३३०६ योजन ) लवण समुद्र में त्रिचरते हैं। शेष पुष्करारा पर्यन्त के चन्द्र सूर्य अपने अपने क्षेत्र में विचरते हैं ।। ३७५ ।। विशेषार्थ :- जम्बू द्वीप के चार क्षेत्र का विस्तार जम्बूद्वीप में मात्र १८० योजन ( ७२०००० मोल ) प्रमाशा ही है। शेष २३०६ योजन विस्तार लवण समुद्र में है, अतः जम्बूद्वीपस्य सूर्य चन्द्र, जम्बूद्वीप के भीतर १८० योजन में ही विचरण करते हैं। शेष ३२०३६ योजन लवरण समुद्र में विचरते हैं । पुष्करार्ध पर्य अवशेष द्वीपसमुद्र सम्बन्धो चन्द्र सूर्यो के चार क्षेत्र का are अपने अपने द्वीप समुद्रों में ही है, बाहर नहीं, अतः वहाँ के चन्द्र सूर्य अपने अपने क्षेत्र में ही विहार करते हैं । अथ राज सूर्याचन्द्रमसोत्रयीप्रमाणं कथयति
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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