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________________ त्रिलोकसार गाथा: ३७४ पुष्करा द्वीप में सूर्य से मूर्य का अन्तर : अर्घ गुष्कर द्वीप का बलय व्यास ८ लाख योजन है । तथा यहाँ सूर्य चन्द्रों की संख्या ७२, ७२ है। { ८०००.० – ( १६x२ ) ३. =२२२२१११ योजन सयं से सूर्य का अन्तर। २२२२१३२ =११११० योजन परिधि से सूर्य मोर सर्य से बाह्य परिधि का अन्तर । २१२२११४४३५ = ७७७७३५ ५५ योजन सूर्य के ३५ अन्तरालों का क्षेत्र । ११११०३१४२ - २२२२१३ योजन सूर्य की दो परिधि का क्षेत्र । x३६= १२० योजन ३६ सूर्यों का क्षेत्र । ८....0 योजन वलय व्यास पुष्कराध द्वीप में चन्द्रों का अन्तरालः{८०....--(५१४३ )}:५२-२२२२१३० योजन चन्द्र से चन्द्र का अन्तर २२२२१२ १९११.३० योजन परिधि से चन्द्र का अन्तर २२२२१३१४३५७७७७२५१ योजन चन्द्रों के ३५ अन्तरालों का क्षेत्र । ११११०१६x२ =२५२२१११ घोजन परिधि में चन्द्र और चन्द्र से परिधि के अन्त ० का क्षेत्र । १X = ६ योजन ३६ चन्द्रों का विस्तार क्षेत्र ___८००.०० योजन वलय व्यास इदानी चार क्षेत्रमाह-- दो दो चंदरवि पडि एक्के होदि चारखेस तु | पंचसयं दमसहियं रविविवाहियं च चारमही ।। ३७४ ।। हो ही चन्द्ररवी प्रति एक भवति चारक्षेत्र तु । पनशनं दशसहितं रविनिम्बाधिकं च चारमही ॥ ३७४ ।। वो हो । द्वौ चन्द्ररवी प्रति एक भवति बारक्षेत्रं । समस्तचारक्षेत्र पुन: नियविति वा पश्चातानि शसहितानि रविधिम्बप्रमारणेनाधिकानि ५ घारमहीप्रमाणं स्यात् ॥ ३४ ॥ अब चार क्षेत्र कहते हैं :
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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