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त्रिलोकसार
सुरगिरिचंदरवीणं परमं पति अंतरं च परिहिं च । दिणदिनपरिहर्ण खेवादी साहए कमसो || ३७८ ||
सुरगिरिचन्द्ररवीणां मार्ग प्रत्यन्तरं च परिधिः च । दिनगतितत्परिश्रम क्षेपात् साधयेत् क्रमशः || ३७८ ॥
गाथा : ३७८
सुरगिरी। सुरगिरिचन्द्रश्वोरणां मार्ग प्रत्यन्तरं च परिषिश्चानेतव्यौ । कथमिति चेत्, arghouासे एकस्मिन् लक्षे १ ल०, तबुद्दीपाभ्यन्तरोभयपार्श्वस्य चारक्षेत्र प्रमाण (३६० ) मपनीयते छेतु स्यन्तरीक ६६६४० स्यात् । सदेव सूर्यसूयांतरं स्यात् । तत्र मेण्यास १०००० मपनीय ८६६४० प्रकृते ४४८२० सुरगियन्तरीयस्य सूर्यान्तरं स्यात् । तत्र दिवस २६६ गतिक्षेपे कृते सति ४४८२२३६ द्वितीयबीषीगत सूर्यसुरगियोरन्तरं स्वात् । एवं प्राचीन प्राचीन सुरगिरिसूर्यान्तरे दिनगति क्षेपे कृते उत्तरोत्तरसुरगिरिसूर्यान्तरं स्यात् । सम्पन्सरवीथी विष्कम्भे ६६६४० द्विगुणविनयति भवा ५३ क्षपे कृते १९६४५३५ द्वितीयधीयीत सूर्य सूर्ययोरन्तरं स्यात् । एवं स्वस्वाभ्यन्तरे विऽहम्मे द्विगुरादिनगतिमं ५३५ कृत्वा उतरोतर सूर्य सर्वयोरन्तरं ज्ञातव्यं । विश्वम्भरादिनाम्यन्तरविष्कम्यस्य परिषिमानीय तस्मिन् मभ्यन्तरीषीपरिषी ३१५०८९ विगुणविनगति परिधि विश्वम्भ ३४० वभावगुण १५१ करणी १५ स्याविनानीय निहारेण भक्त्या १७३६ निक्षिप्ले ३१५१०६३ द्वितीयवीथीपरिधिः स्यात् प्रमुमेव द्विगुगाबिनगतिवधि पूर्वपूर्वपरियों क्षपे कृते उत्तरोत्तरवोयीपरिधिः स्यात् । एवमुक्तप्रकारेण विनगतिअपात् द्विगुदिन गति वात् द्विगुरपविनगतिपरिषिक्ष पाच्च सुरगिरिसूर्यान्तरं परिषि च साधयेत्
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क्रमशः ॥ ३७८ ॥
प्राप्त हुए दिवस गति के प्रमाण का आश्रय कर मेरुपवंत से प्रत्येक मार्ग, अन्तर और उन मार्गों की परिधि कहते हैं :
पायार्थ :- दिन गति तथा दिन गति की परिधि को क्षेपण करने पर क्रमशः सुमेरु से सूर्य चन्द्रमा के मार्ग का अन्तर सूर्य से सूर्य का तथा चन्द्रमा से चन्द्रमा का अन्तर और परिषि का प्रमाण सिद्ध होता है । अर्थात् दिन गति का क्षेपण करने पर सुमेरु मे सूर्य व चन्द्र का अन्तर तथा एक सूर्य से दूसरे सूर्य का और एक चन्द्र से दुमरे चन्द्र का अन्तर सिद्ध होता है। दिनगति को परिधि में क्षेपण करने से मार्ग की परिधि सिद्ध होती है ।। ३८ ।।
विशेषार्थ :- सुमेरु पर्वत से चन्द्र सूर्य के मार्ग का अन्तर और मार्ग ( प्रत्येक गली ) की परिधि का प्रमाण किस प्रकार लाना चाहिये ? उसे कहते हैं ।
१ चानयेत् ( ब०, प० ।