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________________ गामा सं० विषय ३४६- ३५१ मानुषोत्तर पयंत के पर भाग में चन्द्र व सूर्य का अवस्थान क्रम व संख्या व परस्पर में अन्तर ७५० ३५२-३५९ असंख्यात द्वीप समुद्रगत चन्द्रादिक को संख्या प्राप्ति के किये कपात द्वोप समुद्रों की संख्या का कथन ज्योतिशे का संख्या खाने के लिये जो गच्छ कहा है उस की आदि भहते हैं आदि, गुणाकार बोर वच्छ के द्वारा संकलन रूप पत्र को प्राप्त करके सर्व ज्योतिविम्बों का प्रमाण लाने के लिए विधान एक चन्द्रमा के परिवार सम्बन्धी ग्रह, नक्षत्र व ताराओं की संख्या ३६३-२००८ प्रहों के नाम ३७१-२७२ जम्बूद्वीपस्थ भरतादि क्षेत्र और फुलाचल पर्वतों की शटाकाओं द्वारा भरतादि में ताराओं को संख्या ३६१ ३६२ [ ४७ ) ३७३ ३७४-३७५ चार क्षेत्र लोथ उनके विभाग का नियम ३७६-३७८ चन्द्र और सूर्य की वोथियों का प्रमाण विधियों का अन्तराल, मेरु पर्वत से प्रत्येक मार्ग ( वीथी } का अस्वद तथा मार्ग की परिधि Act ३८२ ३८३ नवगादि समुद्र से पुष्करार्धं पर्यंत स्थित चन्द्र सूर्यो का मंतर ३७६-३८० बाह्य और अभ्यन्तर वीथियों पर जब सूर्य होता है तब दिन व रात्रि का प्रमाण तथा प्रतिदिन होनेवाली हानि व बुद्धि का प्रमाण मयं भावण में दक्षिणायन और माघ में उत्तरायण होता है सर्व परिधियों में ताप और तम लाने का विधान ૨૬૪ ३५-३८६ पांचों परिषियों का प्रमाण ३६१०३११ १९२ - ३६४ जिस परिधि में जो तापमान होता है उसका आधा सूर्य विम्ब के पीछे मोर आधा सूर्य बिम्ब के जागे होता है प्रत्येक दिन में ताप व तम की हानि वृद्धि का प्रमाण ३८७-३८८ दक्षिणायन में सूर्य शीघ्रता से गमन करता है और उत्तरायण में सूर्य मंद मंद गति से गमन करता है, इसका दृष्टान्त तथा प्रत्येक वोषी में सूर्य का एक मुहूर्त में गमन क्षेत्र पृष्ठ सं० अभ्यत्वर वीथी में स्थित सूर्य और चक्षु इन्द्रिय की दूरी प्रयोजन भूत चाप का प्रमाण प्राप्त करने के लिये, उसके बाण को प्राप्त करने का विज्ञान तथा निषध पर्वत की पाचवें भुजा का प्रमाण R&R २९५ ३०४ ३०७ ३११ ३१२ ३१५ ३१६ ३२० ३२२ ३२८ ३३० ३३१ ३३४ ३३४ ३३५ ३३६ १३६ rk
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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