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पाय।। ३५४-३५५ ज्योतिर्लोकाधिकार
२६७ लाख बारह हजार पांच सौ ) योजन शेष रहे, अतः स्वयम्भूरमण द्वीप की अभ्यन्तर वैदी से ११२५०० योजन आग जाकर तृतीयवार अर्ध किया हृमा राजू का प्रमाण प्राप्त होता है।
इसी प्रकार पूर्व पूर्व प्रमाण को अर्घ अधं करते हुए उसमें से पूर्व पूर्व के वलयव्यास को घटाने पर जो जो प्रमाणा गाम हो नही चाहि काम पनं किये हुए राजू क्षेत्र का प्रमाण जानना चाहिए।
पुणरवि विण्णे पच्छिमदीयम्भंतरिमवेदियापरदो । सम्पदलजुदपण्णचरिसहस्समोसरिय णिवडदि सा ।। ३५४ ॥ पुनरपि चित्रायां पश्चिमद्वीपाभ्यन्तरवेदिकापरतः ।
स्वदलयुतपश्चसप्ततिसहस्रमपसृत्य निपतति सा ।। ३५४ ॥ पुण। द्वितीषवारछिनरो ३१२५००० पुनरपि छिन्तायो १५६२५.० पश्चिमीपाम्पतरवेबिकापरतो गत्वा स्वकीयबल ३७५०० युक्तपत्रसप्ततिसहस्र ११२५०० मपसृत्य निपतति सा रज्जुः ॥ ५४॥
पापा:-पुनः माधा किया हुआ राजू का प्रमाण पिछले द्वीप को अम्यन्तर वेदो से अपने अर्थ माग सहित ७५००० (पचहत्तर हजार ) योजन अर्थात् (७५.००+३७५००)-११२५०० योजन दूर जाकर पड़ता है ।। ३५४ ।।
विशेषार्थ :-अङ्क संदृष्टि में दूसरी बार छिन्न (अर्घ ) किया हुआ राजू का प्रमाण ३१२५००० योजन था, इसे पुन: आधा करने पर (१२५००० )=१५६२५०० योजन हुआ। यह प्रमाण पिछले द्वीप की अभ्यन्तर वेदी के पर भाग से आगे उस द्वीप में अपने अर्ध भाग [ ( 420 )= ३७५०० योजन 1 सहित ७५००० योजन अर्थात् ( ७५००० + ३७५०० यो० ) = ११२५०० योजन दूर जाकर पड़ता है।
दलिदे पूण तदर्णतरसायरमज्झतरत्यवेदीदो। पडदि सदलचरणणिपण्णतरिदसमयं गचा ।। ३५५ ।। दलित पुनः तदनन्तरसागर मध्यान्तरस्थ वेदीतः ।
पतति स्वदलचरणान्वितपञ्चसप्ततिदशशतं गत्वा ।। ३५५ ॥ बलि । हिमम तृतीयवारछिन्नखण्डे १५६२५०० पलिते ७८१२५० पुनस्तानन्तरसागराम्यन्तरस्पवेदिकापरत: पतति स्वकीयबल ३७५०० चतुपाशाभ्यो १८७५० प्रतिपञ्चसप्ततिदशशतं १३१२५०
गाभार्थ:-पुनः आधा किया हुआ राजू का प्रमाण उस द्वीप के बाद वाले समुद्र की अम्बन्तय वेदो से आर्ग अपने अघ और 'सत्तुर्थ भाग से सहित ७५००० योजन दूर जाकर पड़ता है ।। ३५५ ।।
विशेषा:-अङ्क संदृष्टि में तीसरी बार आधा किया हुआ राज का प्रमाण १५६२५०० योजन था। इसे पुन: अर्ध करने पर ( १५१३५०° ) - ७८१२५० योजन प्राप्त हुआ। यह ७३१२५०