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पृ . ___उपन्तरलोक अधिकार ३
२२६-२५. २५० ४माता देवों तथा जिन चैत्यालयों का प्रमाण
१२१ १५१-२५३ मन्तर देवों के भेद तथा उनके शरीर का वर्ण
२२ २५३-२५५ चैत्यवृक्षों के नाम, जिनप्रतिमा, मानस्तम्भ
१२ art-२८ बाठ कुलों वान्तर भद, प्रत्येक कुल के इन्द्र सपा उनकी वल्लमा तथा वलिना को भायु
२० २७॥ प्रतीन्द्र, सामानिक, तनुरक्षक तथा पारिषद देवों की संख्या २०-२१ सातों भनीकों के माम, भेर तथा महत्तरी के नाम
२३८ २८२ मनीक और प्रकीर्णकादि देवों की संख्या २८३-२८० भ्यन्तर रेवों के नपरों के मात्रयरूप द्वीपों के नाम, नगरों के नाम, आयाम,
नगरों के फोट तथा दरवाजों की ऊँचाई, दरवाजों के ऊपर स्थित प्रासाद, तथा नमरु बाह्य वन और उनमें गणिका महत्तरियों के नगरों का प्रमाण व
संपादि २३. कुल भेदों की अपेक्षा निलय (भवन) भेदों का निरूपण २४१-२३ नीचोपाद देवों के निवास क्षेत्र व आयु २१४-4.1 भवनपुर, जावास और भवन के स्थान, स्वामी, आमाम मावि
बाझर व सन्नवास का कम भवनपय में जन्म मेनेवाले वीव गा०४५. पृ. ३६०
व्यन्तर लोक अधिकार समाप्त ज्योतिलोंकाधिकार
२५१-३९८ ज्योतिष देवों तथा ज्यी सबिम्ध एवं चैत्यालयों की संख्या ज्योतिष देवों के भेष
तिर्यग्लोक का कथन ३०४-10८ ज्योतिष देवों के बाधारभूत द्वीप समुद्रों के नाम व संख्या सपा विस्तार व
माकार इच्छित दीप व समुद्र का सूची व्यास एवं वलय श्यास लाने के लिए करणसूत्र । २५४ अभ्याता मध्य और बाह्य सबी प्राप्त करने के लिए करणसूत्र सूचौगास के आधार से चादर व सूक्ष्म परिधि तवा बारसम्म क्षेत्र फल प्राप्त करने के लिए करण मात्र
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