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गापा। ३५०
ज्योतिर्लोकाधिकार
मानुषोत्तर पर्वत के परभाग में चन्द्र और सूर्य के अवस्थान अम को कहते हैं :
गाया :-मानुषोत्तर पर्वत से और द्वीप समुद्रों को वेदिका के मूल से ( ५०...) पचास हजार योजन आगे जाकर प्रथम वलय है, तथा दोनों स्थानों के प्रथम वलयों से एक एक लाख योजन आगे जाकर द्वितीयायि वलय हैं ।। ३४९ ।।
विशेषार्थ:-मानुषोत्तर पर्वत से पचास हजार ( ५०... ) योजन आकर बाह्म पुष्कराध में { चन्द्र सूर्य का) प्रथम वलय है, और प्रथम बलय से एक एक लाख योजन ागे जाते हुए कम से वितीयादि वलय हैं । इसी प्रकार द्वीप समुद्रों की वेदिका के मूल मे ५० हजार पोजन जाकर प्रथम वलय है, इसके बाद एक एक लाख योजन मागे मागे द्वितीयादि वलय हैं । अथ तेषु वलयेषु व्यवस्थित चन्द्रादितः:: संगामालगानि....
दीपद्धपढमबलये चउदालसयं तु घलयबलयेसु । चउचउवड्ढी भादी आदीदो दुगुणदुगुणकमा ।। ३५० ।। द्रोपाधप्रथमवलये चतुश्चत्वारिंशचन्द्रतं तु वलपवलयेषु ।
चतुश्चतुद्धयः प्रादिः आदितः द्विगुणदिगुण कमः ॥ ३५ ॥ वोव। मामुषोतराहिः स्तिकाद्वीपाघप्रयमवलये चतुषवस्मारिशसरशतं १४ तत उपरि वलयबलपेषु पतनश्चतक्षो वृक्षयो भवन्ति । १४८ । १५२ । १५६ १ १६० । १६४ । १६८ । १७२ उत्तरोतरस्य द्वीपस्य समुद्रस्य वा प्राविः प्रथमप्रपमस्य डीपस्य Rमुनस्य का प्राक्तनालयस्याक्सि: द्विगुणद्विगुरण कम: २८८ ॥ ३५ ॥
इन वलयों में स्थित चन्द्रों और सूर्यों की संख्या :
पाया :- बाल पुष्करा द्वीप के प्रथम वलय में १४४ चन्द्र और १४४ सूर्य हैं, तथा द्वितीयादि वलयों में प्रथमादि वलयों से चार चार की वृद्धि को लिए हुए हैं। पूर्व पूर्व द्वीप समुद्रों के आदि में चन्द्र, सूर्य की जो संख्या है, उससे उत्तरोत्तर द्वीप समुद्रों को आदि में चन्द्र सूर्य की संख्या दूनी दुनी है ॥ ३५० ।।
वियोषा :-मानुषोत्तर पर्वत से बाहर जो पुष्करसंघ द्वीप है, उसके प्रथम वलय में चन्द्र और सूर्यों की संख्या १४४, १४४ है । दूसरे, तीसरे आदि घलयों में चार बार की वृद्धि होते हुए कम से १४८. १५२, १५६, १६०, १६४, १६८, १७२.....--." हैं। पूर्व पूर्व द्वीप समुद्रों के आदि में चन्द्र सूर्य की जो संख्या है, उत्तरोत्तर द्वीप समुद्रों के आदि में उससे दूनी वूनी है। जैसे :पुष्करा द्वीप के आदि ( प्रथम ) वळय में चन्द्र, सूर्यो को संख्या १४४, १४ है और पुष्कर समुद्र के बादि में दोनों की संख्या २८८, २८८ है, इसके बाद प्रत्येक वलय में ४, ४ की वृद्धि होगी।