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२६४ গিভীৱাৰ
पापा।११ अथ तत्तालयव्यवस्थित चन्द्रचन्द्रातरं सूर्यसूर्यान्तरं च निवेदयति
सगसगपरिधि परिधिगरबिंदुमजिदे ६ अंतर होदि । पुस्सम्हि सन्वररहिया हु चंदा व अभिजिम्हि ।। ३५१ ।। स्वकस्व कपरिधि परिधिगरवीन्दुभक्त तु अन्तर भवति ।
पुष्ये सर्वसूर्याः स्थिता हि चन्द्राच अभिजिति ॥ ३५१ ॥ __सग। स्वकोपस्वकीयसूक्ष्मपरिषो परिधिगतरवीनुप्रमाणेन मर सति बसरं भवति । तत्र सावलम्जूहीपाबारम्पोभयभागगततसमूहोपतमुव्वलयल्याप्तमेलनसमात द्वितीयपुष्कररावप्रथमलयसूचीकयासत्य ४६..... विश्वंभव' स्याविना परिधिमानीय १४५४६४७७ तस्मिन् सत्यरिधिगसरवीन्दुप्रमाणेन १४४ भक्त बिम्बसहितान्तरं पत्रावित्याना १८१०१७ पोष २४१ बिम्ब र हितान्तरानयने लिम्बसहितान्तरलापादेकमपनीय १०१०१६ शेषेण सह समय वा 48 घे मेलयिस्या
सामनेन सह बपिम् + सूर्यविम्ब वा परस्परहारगुणमे समन्छेदं कृत्वा शेष चन्द्र सूर्य १७१३ बिम्बे तस्मिन चन्द्रबिम्बे अपनीते सूर्यबिम्बे अपनीते । बिम्बरहितं बगसूर्यातरं स्यात् । पुष्ये सर्वे सूर्याः स्थिताः पाच प्रविति स्पिताः ।। ३५१ । ___ अब उन उन वलयों में स्थित चन्द्र से चन्द्र का सूर्य से सूर्य का अलर कहते हैं :
गाथार्थ:-अपनी अपनी परिधि में अपनी अपनी परिषि ( वलय ) गत चन्द्र और सूर्यो को संख्या का भाग देने पर वहाँ स्थित एक चन्द्र से दूसरे चन्द्र का और एक सूर्य से दूसरे सूर्य का अन्तर ज्ञात होता है। सवं सूर्य पुष्य नक्षत्र पर और सर्व चन्द्र अभिजित् नक्षत्र पर स्थित हैं।॥ ३५ ॥
विशेषार्य :--अपनी सूक्ष्म परिधि में परिधिगत सूर्य चन्द्रों की संख्या का भाग देने में दोनों का अपना अपना अन्तर प्राप्त होता है।
जम्बूदीप से प्रारम्भ कर दोनों ओर के अभ्यन्तर द्वीप समुद्रों का वलय मास मिलाने से बाह्य पुष्कराध के प्रथम बलय का सूची व्यास चालीस लाख (४६०००.० ) योजन प्रमागा प्राप्त होता है । जैसे :-मानुषोत्तर पर्वत का सूची व्यास पेंतालीस लाख ( ४४००००.) योजन है, इसमें दोनों ओर का पचास, पचास हजार ( १ लाख ) योजन वलयध्यास मिला देने से ( ४५ लाख+१ लास्न )= ४६ लाख योजन' सूची व्यास प्राप्त हो जाता है। "विश्वम्भ वादह" इत्यादि करण पूत्र (गा. ९६) के द्वारा ४६ लाम्न योजन सूचीच्यास की परिधि का प्रमाण १४५४६४४७ योजन ( एक करोड़ पंतालीस लाख छयालीस हजार चार सौ सतत्तर योजन ) होता है। इस परिधि में तद्गत चन्द्र सूर्यो की संख्या का भाग देने पर उन उन चन्द्र सूर्यों का बिम्ब सहित अन्तर प्रा होता है । जैस:१४५४६४७७ : १४४-१०१.१७१. योजन अन्तर बिम्ब सहित एक चन्द्र से दूसरे चन्द्र का और एक