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त्रिलोकमार
इगिवीपारस विहाय मेरुं चरंति जोइगणा । चंदतियं जिता सेसा हु चरन्ति एक्कपड़े || ३४५ ।। एक विशंका दशशतानि विहाय मेरुं घरन्ति ज्योतिर्मणाः । चन्द्रत्रयं वर्जयित्वा शेषा हि चरन्ति एकपथे ॥ ३४५ ।।
पापा: ३४५-३४६
इगि । एक विशाgतरेकादशशतानि योजनासि मेयं विहाय चरन्ति ज्योतिगंगाः चन्द्राविश्या इति त्रयं वर्जयित्वा शेषाः खलु चरन्त्येकस्मिन् पथि ॥ ३४५ ।।
ज्योतिषीदेव मेरु पर्वत से कितनी दूर जाकर और कैसे रामन करते हैं ? ऐसा प्रपन होने पर कहते हैं :
गाथा: ज्योतिष सुदर्शन मेरु को ग्यारह सौ इक्कीस योजन छोड़कर गमन करते हैं। चन्द्र त्रय (चन्द्र, सूर्य, ग्रह ) को छोड़कर शेष सभी ज्योतिथी देव एक ही पथ में गमन करते हैं ।। ३४५ ॥
विशेषार्थ :- ज्योतिषी देवों के समूह मेरु पर्वत को ११२१ योजन (४४८४००० मील) छोड़ कर प्रदक्षिणा रूप से गमन करते हैं । अर्थात् मेरु पर्वत मे ११२१ योजन पर्यन्त कोई भी ज्योतिषी देव नहीं पाये जाते । चन्द्र, सूर्य और ग्रह इन तीन को छोड़कर शेष नक्षत्र व तारागण सदा एक ही मार्ग में गमन करते हैं ।
इदानीं जम्बूद्वीपमारभ्य पुष्करापर्यन्त चन्द्रावित्यप्रमाणं निरूपयति
दोहोवरमं वारस बादाल बहचरिंदुणसंखा |
पुखरदलोति परदो अडिया सबोगणा || ३४६ ||
द्वौ दिवाशद्वाचत्वारिंशत् द्वामप्नतिरिद्विनसंख्या । पुष्करला
परतः अवस्थिताः सर्व ज्योतिर्गणाः ।। ३४६ ।।
दो हो । जम्बूद्वीपावरम्य हो द्विवर्गद्वारा वाचत्वारिदासप्ततयः यथासंख्यमिनिम संख्या पुरवलं यावत् । ततः परतः प्रवस्थिताः सर्वज्योतिराः ॥ ३४६ ॥
जम्बूद्वीप से प्रारम्भ कर पुष्करार्ध पर्यन्त चन्द्र सूर्य के प्रमाण का निरूपण करते हैं
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गावार्थ :- चन्द्र और सूर्य की संख्या जम्बूद्वापावि में क्रमशः दो, चार, बारह, बयालिस और बहत्तर है। पुष्करा के पर भाग में सर्व ज्योतिगंगा अवस्थित है, गमन नहीं करते ।। ३४६ ॥ -जम्बूद्वीप में दो चन्द्रमा और दो सूर्य है। लवणोदक समुद्र में चार चार हैं।
विशेषार्थ:--ज