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________________ २८८ त्रिलोकसार गाथा : ३४३ चन्द्रमा का विस्तार योजन है, और उसके भाग १६ हैं, अतः जब कि १६ भागों का "योजन विस्तार है, तो एक भाग का कितना व्यास होगा? इस प्रकार राशिक कर (१४) को आठ से अपवर्तन करने पर पर योजन ( २२९१ मील ) व्यास एक कला का प्राप्त होता है । १ कला का विस्तार १५ योजन है तो १६ कला का कितना होगा? इस प्रकार राशिक करने पर वही योजन प्राप्त हो जायगा । ___ अन्य प्राचार्यों का अभिप्राय है कि :-अन्जनवर्गा राहु का विमान प्रतिदिन एक एक पथ में पन्द्रह कला पर्यन्त चन्द्र लिम्ब के एक एक भाग को आच्छादित करता है, और पुन: वही राहु प्रतिपदा से एक एक वीश्री में अपने गमन विशेष के द्वारा पूर्णिमा तक एक एक कला को छोढ़ता जाता है। अथ चन्द्रादीनां विमानवाहकदेवानामाकारविशेष तत्संख्यां चाह--- सिंहगयवसहजडिलम्सायारसुरा वहति पुवादि । इंदुरवीणं सोलससहस्समद्धमिदरतिये ॥ ३४३ ।। सिंहगजवृषभटिलाश्वाकारसुरा बहुन्ति पूदिम् । इन्दुरोणां षोडषसहस्र अर्थाचं मितरत्रये ।। ३४३ ।। सिंह । सिंहगजवृषमजटिलापवाकारसुरा पहन्ति तद्विमानपूर्वादिकं सरसंख्या इन्तुएवोगा षोडशसहस्राणि तवर्षिक्रममितरत्रये ग्रहनक्षत्रतारकारूपे ॥ ३४३ ॥ चन्द्रादिक ज्योतिषी देवों के विमान, वाहक देवों का आकार विशेष और संख्या कहते हैं : गाथार्थ :-सिंह, हाथी, बैल और जटा युक्त घोड़ों के रूप को धारण करने वाले सोलह सोलह हजार देव चन्द्र और सूर्य के हैं. तथा अन्य तीन के अर्घ मधं प्रमाण हैं। ये सभी आभियोग्य देव अपने अपने विमानों को पूर्वादि दिशाओं में ले जाते हैं ॥ ३४३ ।। विशेषार्थ :-मिह आदि आकार वाले देव क्रम से पूर्वादि दिशाओं में अपने अपने विमानों को ले जाते हैं। चन्द्र सूर्य के वाहन देव १६, १६ हजार हैं। शेप के अर्ध अधं प्रमाण हैं। जैसे : [ चार्ट अगले पृष्ठ पर देखिये )
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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