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बाषा: ४२ ज्योतिलौकाधिकार
२८७ ___चंविण । वनावित्ययोः द्वावधासहस्त्रा: पायाः करा: बोतलाः लरा: उष्णाश्च । शुक्रवतृतीय २५०० सहस्रा: तीयाः प्रकाशेनोवला: शेषास्तु मन्वाराः मन्धप्रकाशाः ॥ ३४१ ।।
चन्द्रमा आदि ग्रहों की किरणों का प्रमाण और उनका स्वरूप कहते हैं:
गाथार्ष:-चन्द्रमा और सूर्य को क्रम से शीतल और तीक्ष्या बारह बारह हजार किरणे हैं। शुक्र की किरणें तीन हैं, तथा अढाई हजार हैं। शेष ज्योतिषी मन्द प्रकामावाली किरणों सहित हैं ।। ३४१ ॥
विशेषार्थ :--चन्द्रमा की किरणें बारह हजार प्रमाण हैं, और शीतल हैं। सूर्य की किरणों मो बारह हजार है, किन्तु वे तीक्ष्ण हैं। शुक्र की किरणें अढाई ( २५०० ) हजार हैं. वे तीन अर्यात प्रकाश से उज्ज्वल हैं। शेष ज्योतिषी देवों की किरणे मन्द प्रकाश वाली हैं। अथ चन्द्रमण्डलस्य वृद्धिहानिक्रममावेश्यति
चंदो णियसोलसमं किण्हो सुक्को य पण्णरदिणोति । हेट्ठिल णिच्च राहूगमणविसेसेण वा होदि ।। ३४२ ।। चन्द्रो निजषोदशं कृष्णः शुक्लश्च पचदशदिनान्तम् ।
अघस्तनं नित्यं राहुगमनविशेषेण वा भवति ॥ ३४२ ।। हो। चन्नः निषोडशमागभिवयाप्य कृष्णः शुक्लप भवति। पञ्चदशदिनपर्यन्तं षोडशकलाना १६ मेतावति बिम्बक्षेत्रे एकालायाः सिमिति सम्पात्याष्ट्राभिरपवयं गुपिते एवं
व एककलायाः एतावति क्षेत्र पर पोडशकलाना १६ किमिति सम्पास्याभ्यामपवयं गुरिणते एवं समाचार्यान्तराभिप्रायेणापत्तननित्यराहगमनविशेषेण वा भवति ॥ ३४२ ॥
चन्द्र मण्डल की वृद्धि हानि का क्रम बताते हैं :
गापा:-चन्द्र मण्डल पन्द्रह दिनों में अपनी सोलह कलाओं द्वारा स्वयं कृष्ण और शुक्ल कंप होता है। अन्य प्राचार्यों के अभिप्राय में राहु. चन्द्र विमान के नीचे विशेष प्रकार से गमन करता है, जिस कारण चन्द्र प्रत्येक पन्द्रह दिनों में कृष्ण और शुक्ल होता है ।। ३४२ ।।
विशेषार्थ :--चन्द्र विमान के कुल १६ भाग हैं। एक एक दिन में एक एक भाग जब कृष्ए रूप परिणमन करता जाता है नब चन्द्रमा १५ दिन में स्वयं कृष्ण रूप हो जाता है, और जब प्रत्येक दिन एक एक भाग श्वेतरूप परिणमन करता है तब चन्द्र, १५ दिन में कम से शुक्ल रूप हो जाता है।