________________
२८६
হিলাঙ্গনা
गाषा । १४०-३४१ राहु । राहरिविमानौ निश्चिमयूमयोजनण्यासौ सारयोरयोगम्ता पम्मा पस्तेि वगरवो छापयतः कमेण ॥ ३३॥
राहु, केतु विमानों का व्यास, उनके कार्य और उनका अवस्थान दो गाथाओं द्वारा कहा जाता है :
गाथार्थ :-राह और अरिष्ट ( केतु । के विमानों का व्यास कुछ कम एक योजन प्रमाण है। इन दोनों के विमान चन्द्र सूर्य के विमानों के नीचे गमन करते हैं, और दोनों छह माह बाद पर्व के अन्त में क्रम मे चन्द्र और सूर्य को आच्छादित करते हैं ।। ३३९ ।।
विशेषार्ष:- राहु और केतु, दोनों के विमानों का व्यास कुछ कम एक एक योजन प्रमाण है । राहु का विमान चन्द्र विमान के नीचे और केतु का विमान सूर्य विमान के नीचे गमन करता है। प्रत्येक छह माह बाद पर्व के अन्त में अर्थात कम से पूणिमा और अमावस्या के अन्त में राह चन्द्रमा को और केतु सूर्य को आच्छादित करता है, इसी का नाम ग्रहण है।
राहुअरिद्वविमाणघयादवरि पमाणअंगुलचउक्कं । गंतूण ससिधिमाणा रवि माणा कमे होति ।। ३४. ।।
राहरिविमानध्वजादुपरि प्रमाणांगुल चतुष्कम् ।
गत्वा शशि विमानाः सूर्यविमाना कमेण भवन्ति ।। ३४० ॥ राह । राहरिकृविमानध्वनवण्णादुपरि प्रमाांगुलचतुष्कं गया शतिविमानाः सूर्यविमामाच अमेण भवन्ति ॥ ३४० ॥
गायार्थ :- राहु और केतु विमानों की ध्वजा दण्ड से चार प्रमाणांगुल ऊपर जाकर क्रम से चन्द्र का विमान और सूर्य का विमान है ॥ ३४०॥
विशेषार्थ:-राह विमान की ध्वजा दण्ड से चार प्रमाणांगुल ऊपर चन्द्रमा का विमान है, और केतु विमान की धजा से चार प्रमाणांगुल ऊपर सूर्य का विमान है। अप चन्द्रादीनां किरणप्रमाणं नस्वरूपं चाह
चंदिण बारसहस्सा पादा सीयल खरा य सुक्के दु । अड्वाइजमहस्सा तिच्या सेसा हु मंदकरा ।। ३४१ ।। चन्द्रनयोः द्वादशसहनाः पादाः शीतलाः खराश्च शुक्रे तु । अर्धतृतीयसहस्राः तीवाः शेषा हि मन्दकराः ।। ३४१ ।।