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________________ पाषा:३९ ज्योतिलोकाधिकार २५ के विमान का है। शुक्रा, गुरु और अन्य तीन ग्रहों का व्यास कम से एक कोश, कुछ कम एक कोश और अध मध कोश प्रमाण है । तारामों का जघन्य व्यास एक कोश का चतुर्थ भाग अति पाव (1) कोश है । मध्यम व्यास कोश से कुछ अधिक नेकर कुछ कम एक कोश तक है, तथा उत्कृष्ट व्यास ( विस्तार ) एक कोश प्रमाण है । नक्षत्रो का व्यास भी एक कोश प्रमाण है । सर्वज्योतिर्विमानों का बाहल्य ( मोटाई ) अपने अपने व्यास के अधं प्रमाण है ॥ ३३७, ३३८॥ विशेषार्थ:-सर्वज्योतिविमानों का ध्यास और बाहुल्य निम्न प्रकार से है : | कमांका ज्योतिबिम्बों के __नाम व्यास ( रिस्तार ) । योजनों में । भीलों में । बाहल्प ( मोटाई) योजनों में | मीलों में शुक्र मक बुध | आधा कोश २५० . १ । चन्द्र विमान । योजन ३६७५ मोल । योजन १८३६४ मोन ६ योजन ३१४७३३ मोल योजन १५७३ मील | १ कोश १००० मील कोश ५. मील कुछ कम १ कोश कुछ कम१०००, कुछ कम कोश कुछ कम५.. ५०० मील । ३पाव ) - २५० मील मंगल ५०० " शनि २५० - तारामों का जघन्यः पाव (1) कोश २५० । कोश १२५ - " मध्यमवको "" उत्कृष्ट १कोग कोश ५००, नक्षत्र विमान । १कोश १०। राह . कुछ कम १ योजन कछकम ४०१०: कुछ कम योजन |- कमर..." ५१| केतु " कुछ कम १ योजन ४५०० मील ! . " योजन ५०० । अथ रावरिषगृहयोविमानव्यासं तरकार्य तदवस्थानं च गाथाद्वयेनाह राहुअरिदुषिमाणा किंवृणं जोगण मधोगना । छम्मासे पच्चंते चंदरची छादयति कमे ।। ३३९ ।। रावरिविमानो किनिदूनी योजनं अधोगन्तारी । षण्मासे पर्वान्ते चन्दरवी छादयतः कमेण ॥ ३३९ ॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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