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त्रिलोकसार
पाया।३२५-३३०
सुद्धखरभूजलाणं बारस पावीस सच य सहस्सा । तेउतिए दिवसतियं सहस्सतियं दस य जेट्ठामो ।।३२८|| शुद्धखरभूजलानां द्वादश द्वाविंशतिः स च सहनारिण ।
तेजस्त्रये दिवसत्रयं सहस्रत्रयं दश च ज्येष्ठम् ।। ३२८ ॥ सुध। शुद्धखरमूजलामामायुज्येष्ठ यथासंख्यं बाशवर्षसहस्राणि । द्वाविंशतिवर्षसहसारिण सप्तवर्षसहस्राणि । तेमस्त्रये तेजोवातवनस्पतिकायिके पयासंख्य शिवसत्रय सहलवर्षत्रय यशवर्षतहस्राणि ज्येष्ठमायुः ॥ ३२८ ॥
इसी उत्कृष्ट अवगाहना के प्रसङ्ग में पृथ्वी आदिक विशेषणों से विशिष्ट एकेन्द्रियादि जीवों की जघन्योत्कृष्ट स्थिति का प्रतिपादन करने के लिये तीन गाथाए' कहते हैं।
गाया :- शुद्ध पृथ्वी, खर पृथ्वी और जल इनकी उत्कृष्टायु क्रम से बारह हजार, बावीस हजार और सात हजार वर्ष है, तथा तेजस्कायिक आदि तीन ( तेज, वायु और वनस्पति० ) की उत्कृष्ट आयु क्रम से तीन दिन, तीन हजार वर्ष और दश हजार वर्ष है ।। ३२८ ॥
विशेषा:-पृथ्वी के मूल में दो भेद होते हैं. (१) शुद्ध पृथ्वी (२) खर पृथ्वी । शुद्ध पृथ्वी की उत्कृष्टायु १२ हजार वर्ष, खर पृथ्वी को बाईस हजार वर्ष, जलकायिक जीवों को ७ हजाय वर्ष, तेजस्कायिक जीवों की तीन दिन, वायुकायिकों को तीन हजार वर्ष और वनस्पतिकायिक जीवों को उत्कृष्टायु दश हजार वर्ष प्रमाण है।
वासदिणमास बारसमावण्ण छक्क बियलजेवायो । मच्छाण पृथ्वकोही णव पुव्वंगा सरिसपाणे ॥ ३२९ ।। बापचरि पादालं सहस्समाणाहि पक्खिउरमाणे । अंतोमुहुसमवरं कम्ममहोणरतिरिक्खाऊ ॥ ३३ ॥ वर्षदिनमासाः वादर्शकोनपश्चाशत् षट्काः विकलज्येष्ठम् । मत्स्यानां पूर्वकोटि: नव पूर्वाङ्गानि सरीसृपाणाम् ।। ३२६ ।।
द्वासप्ततिः वाचत्वारिंशत् सहस्रमानानि पक्ष्युरगाणाम् । अन्तमुहर्तमवरं कममहीनतिरएचामायुः ॥ ३३ ॥