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________________ २७६ गाथा । ३३१ ज्योतिर्लोकाधिकार वास । वर्षदिनमासाः वावश १२ एकोनपञ्चाशत् ४९ पटकाः ६ विकलेबियाण। सपासंख्य ज्येष्ठमायुः मत्स्यावीमा पूर्वकोटि: मवपूर्वाङ्गानि जरिएकति मानिसमा समीसुपारगाम् ॥ ३२६ ॥ मावत्तरि । दासप्ततिः वाचत्वारिसहनप्रमितानि पक्षिरणासुरगाणां च मगसमुहूर्तमवरमायुः शुसभुवाबीनां सर्वेष कर्ममहीनतिरश्चाम् ॥ ३३० ॥ गाचार्य :-द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों को उत्कृष्टायु क्रम से बारह वर्ष, ४६ दिन और छह माम प्रमाण है. तथा मत्स्य की संस्कृष्टायु पूर्वकोटि प्रमागा और सरीमृपों की उत्कृष्टायु नवपूर्वाण प्रमाण होती है। पक्षियों और सर्पो की उत्कृष्टायु क्रम से बहत्तर हजार और बयालिस हजार वर्ष प्रमाण तथा कर्मभूमि के सर्व नियंश्च और मनुष्यों की जघन्य आयु अन्तर्मुहूतं प्रमाण होती है ॥ ३२९, ३३० ।। विशेषापं :-द्वीन्द्रिय जीवों की उत्कृष्टायु १२ वर्ष, श्रीन्द्रियों को ४६ दिन चतुरिन्द्रियों की ६ माह, मत्स्य की पूर्वकोटि और सरीसृपों की नवपूर्वाङ्ग प्रमाण होती है। ( ८४ लाख वर्षों का एक पूर्वाङ्ग तथा ४ लाख पूर्वाङ्गों का एक पूर्व होता है ।। ८४ लास वर्षों में , का गुणा करने से ९ पूर्वाङ्ग होते हैं, तथा ८४ लाख वर्षों के वर्ग ( ८४ लाख ४८४ लाख ) को एक करोड़ से गुणित करने पर एक पूर्वकोटि होती है। पक्षियों की ७२ हजार वर्ष और सो फी ४२ हजार वर्ष प्रमाण उत्कृष्ट माय होती है। शुद्ध पृथ्वी आदिक को आदि लेकर कर्मभूमिज सर्व मनुष्यों और तियश्चों को जघन्यायु अन्तर्मुहूर्त मात्र होती है। अथ प्रागायुष्यं निरूप्येदानी तेषामेव वेदगतविशेष निम्पति णिग्या इगिविंगला संमृणपंचक्खा होति संहा हु। भोगसुग संदृणा तिवेदमा गम्भणरतिरिया ।। ३३१ ।। निरया एकनिकला: सम्मुर्छनपश्चाक्षाः भवन्ति षण्टाः खलु । भोगसुराः पाहीनाः त्रिवेदमा गर्भनरतिययः ॥ ३३१ ।। पिरया । नारका एकेन्द्रियाः विकलत्रयाः सम्मूर्छनपधेन्द्रियापम भवन्ति यदा सस्नु । भोग मूमिजाः सुराश्य षण्ठवेदेमोनाः । त्रिवेषगा गर्भजनरतियंञ्चः ॥ ३३१॥ __ पहिले जिनकी आयु का निरूपण किया है, अब उन्हीं के वेद विशेष का निरूपण करते हैं :--
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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