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ज्योतिर्लोकाधिकार
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अल्पप्रदेशों का कथन किया जाता है। यहाँ श्रीन्द्रिय का घनफल २७ घन योजन है जो सबसे
एपहर
अल्प है ।
गाथा ३२७
-ZTE
जबकि एक योजन के ७६८००० अंगुल होते हैं तब २७ घन यो० के कितने अंगुल होंगे ? इस प्रकार राशिक करना चाहिये । "धन राशि का गुणकार एवं भागहार घनरूप ही होता है" इस न्यायानुसार २७ घन ०४७६८००० ७६८०००७६८००० घनांगुल होते हैं। शरीरों की
देवहर
गाना का माप व्यवहार अंगुलों से होता है और ५०० व्यवहारांगुलों का एक प्रमाणांगुल होता है, अतः दक X ७६८००* X७६८००० x ७६८००० को ५०० के घन से भाजित करने पर ट *ke xex प्राप्त होते हैं। इसमें भागाहार के ६ शून्यों को अंश के ६ शुन्यों से अपवर्तित कर देने पर २७४७६८००० × ७६८ × ७६८ प्राप्त होते हैं। घंश के ७६८ x ७६८ को ३ से
*५*५ x ५
ण्डित करने पर २५६ x ३४२५६४३ अर्थात् ६५५३६४९ प्राप्त होते हैं । =१९२ से ६५५३६ को अपवर्तित करने पर और ५ x ५ x ५ १२५ से ७६८००० को अपवर्तित करने पर ६१४४ प्राप्त होते हैं। इस प्रकार अंश संख्या २७ ६१४४८९९ प्राप्त हो जाती है। इनका परस्पर में गुणा करने से संख्यात घर्नागुल (६) प्राप्त होते हैं। यहाँ पर घनांगुल का चिह्न ६ है और संख्यात का चिह्न यह है, अतः त्रीन्द्रिय जीव की उत्कृष्ट अवगाहना का घनफल ६ होता है ।
घनफल
'द'
इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय के खात (धन) फल के अंगुल प्राप्त करना चाहिये । चतुरिन्द्रिय का ३ घन योजन है । इस ३ घन यो को उपर्युक्त विधानानुसार ६१४४४६५५३६४९ से गुणा करने पर व्यवहार अंगुल प्राप्त होते हैं। हर के ८ से ६१४४ को अपवर्तित करने पर ७६० आते हैं, अतः चतुरिन्द्रिय जीव का घनफल ६५५३६ X ७६८ × ६ x ३ व्यवहारांगुल प्राप्त होता है। यह संख्यातेन्द्रिय को संख्या से संख्यात गुणी है, अतः इसका चिह्न ६ करना चाहिये। होन्द्रियों के घनफल की अंगुल संख्या चतुरिन्द्रिय से संख्यात गुणी है, अतः उसका चिन्ह ६ की अंगुल संख्या द्वन्द्रिय से संख्यातगुणी है। अतः उसका चिह्न ६ की अंगुल संख्या एकेन्द्रिय से संख्यात गुणी है अतः उसका चिन्ह ६ aaaaa है। इस प्रकार चिन्हों द्वारा प्रदेश अल्पबहुत्व प्राप्त हो जाता है ।
& यह है । एकेन्द्रिय के घनफल ॥ यह | पंचेन्द्रिय के घनफल
एवमुत्कृष्टावगाहृप्रसंगे एकेन्द्रियादीनां पृथिव्यादिविशेषणविशिष्टानामुत्कृष्टजघन्यस्थितिप्रतिपाद
नार्थ गाथात्रयमाह -